नई दिल्ली, Shubh Vivah | हिंदू धर्म में शादियां केवल दो लोगों का ही नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन होती है. इसी वजह से सात फेरे लेने के साथ- साथ कई ऐसे रीति रिवाज होते हैं जिन्हें वधू पक्ष के साथ- साथ वर पक्ष को भी निभाना होता है. हर मां का एक सपना होता है कि उसके बेटे की शादी हो और उसके घर में संस्कारी, सुशील बहू आए. क्या आप इस बात को जानते हैं कि मां कभी भी अपने बेटे की शादी में नहीं जाती और ना ही उसे फेरे लेते हुए देख पाती है.
वहीं, बदलते जमाने के दौर में अधिकतर मां अपने बेटे की शादी में जाने लगी है परंतु अभी भी कई ऐसी जगहें है, जहां पर रीति- रिवाजों को बखूबी से निभाया जाता है. आज की इस खबर में हम आपको बताएंगे कि आखिर मां क्यों बेटे के फेरे नहीं देखती?
इस वजह से मां नहीं देखती अपने बेटे के फेरे
ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा मुगल काल से शुरू हुई थी क्योंकि इस शासनकाल में जब महिलाएं बेटे की शादी में जाती थी तो उनके पीछे से घर में लूटपाट हो जाती थी. इसी वजह से महिलाएं घर में रहकर रखवाली करती थी और सभी महिलाएं मिलकर शादी की रात में ढोलक बजाकर गीत गाती थी.
शादी में मां इसलिए भी शामिल नहीं होती क्योंकि जब बहू अपने ससुराल पहुंचती है तो उसका विधि विधान से गृह प्रवेश किया जाता है. इस दौरान घर के मुख्य द्वार में अल्ता से अपने हाथों का थापे लगाने के साथ- साथ आरती, चावल भरे कलश को सीधे पैर से गिराने से लेकर कई प्रकार की रस्में की जाती है, जिसे मां ही पूरा करवाती है. इसीलिए घर में मां का होना जरूरी माना जाता है.
हमें Google News पर फॉलो करे- क्लिक करे! हरियाणा की ताज़ा खबरों के लिए अभी हमारे हरियाणा ताज़ा खबर व्हात्सप्प ग्रुप में जुड़े!