कुरूक्षेत्र में महाभारत काल का अनोखा तालाब, मात्र नहाने भर से दूर हो जाते है चर्म रोग

कुरूक्षेत्र | हरियाणा के कुरूक्षेत्र में महाभारत काल का वह तालाब है जहाँ युधिष्ठिर और यक्ष के बीच संवाद हुआ था. युधिष्ठिर ने इसी तालाब के किनारे यक्ष के प्रश्नों का उत्तर दिया था. यह वही तालाब है जहां पांडव अपने वनवास के दौरान प्यासे होने पर पानी के लिए पहुंचे थे और उसे पीने के बाद बेहोश हो गए थे. यह कुंड महाभारत काल का है जो कुरुक्षेत्र के अमीन गांव में स्थित है. महाभारत काल से कुछ वर्ष पूर्व तक इसे यक्ष तालाब (महाभारत काल यक्ष सरोवर) के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में इसे सूर्य कुंड के नाम से जाना जाने लगा.

Kurukshetra Talab Nadi

कहा जाता है कि जब पांचों पांडव अपने वनवास पर थे तब जयद्रथ ने द्रौपदी का अपहरण करना चाहा लेकिन भीम ने उसे पकड़ लिया. धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि इसे छोड़ दो क्योंकि यह हमारे सगे- संबंधियों में शामिल है. यह सुनकर भीम ने उसे छोड़ दिया. इसके बाद, पांडव धर्म के मार्ग को शुद्ध करने के लिए अदितिवन धर्मक्षेत्र पहुंचे. वह ऋषियों, मुनियों और ब्राह्मणों की सेवा करना चाहता था और अज्ञात के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता था. एक दिन अचानक एक ब्राह्मण आंखों में आंसू लिए कहने लगा कि महाराज, मैं इस वन का निवासी हूं, आप मेरे संकट दूर करें.

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पांडवों ने पूछा- तुम्हारी समस्या क्या है?

पांडवों ने पूछा कि तुम्हारी समस्या क्या है. ब्राह्मण ने अनुरोध किया कि मेरा यज्ञ (अर्नी) एक पेड़ पर लटका हुआ था, एक हिरण उसके सींग में फंसकर उसे ले गया जिससे मेरा यज्ञ रुक गया है. कृपया मुझ पर एक उपकार करें और मेरी यज्ञाग्नि की तलाशी कराएं.।यह कहकर वे अरनी को ले जाने वाले मृग की खोज करने लगे. सारे जंगल में छान मारा पर अरनी को ले जाने वाला मृग कहीं नहीं मिला. स

भी लोग बहुत चिंतित हो गए और कहने लगे यदि ब्राह्मण का यज्ञ नहीं मिला तो सारा पराक्रम नष्ट हो जाएगा. इसलिए कुछ देर आराम करें और पानी पीकर फिर से तलाश शुरू करेंगे. ऐसा सोचकर पांडव एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं और प्यास लगने पर सहदेव को प्राचीन यक्ष सरोवर से पानी लाने के लिए भेजते हैं।

काफी देर तक इंतजार किया लेकिन सहदेव नहीं लौटा. तब युधिष्ठिर ने नकुल से इसका कारण जानने को कहा. वह भी चला गया और वापस नहीं आया. इसी तरह अर्जुन और भीम को भी भेजा गया लेकिन कोई वापस नहीं आया. अंत में महाराज युधिष्ठिर भी उसी सरोवर पर पहुंचे और देखा कि चारों भाई सरोवर की सीढ़ियों पर मृत पड़े हैं.

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व्याकुल युधिष्ठिर स्वयं जल पीने जा रहे थे तभी वाणी सुनाई देती है कि यह मेरा सरोवर है, मेरे प्रश्नों का उत्तर दिये बिना और मेरी आज्ञा के बिना यदि तुम जल को छू लोगे तो तुम भी अपने भाइयों की भाँति मूर्च्छित रह जाओगे. युधिष्ठिर शब्द सुनते ही रुक गए और खुशी से बोले कि बताओ तुम्हारे प्रश्न क्या हैं, मैं अपनी बुद्धि के अनुसार अवश्य उत्तर दूंगा. यक्ष और युधिष्ठिर के बीच संवाद हुआ. युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए. प्रश्नों के सही उत्तर पाकर यक्ष ने प्रसन्न होकर कहा कि एक भाई के प्राण मांग लो.

युधिष्ठिर महाराज ने उत्तर दिया कि आप कृपया भाई सहदेव को जीवनदान दें. यक्ष ने आश्चर्य से पूछा, ऐसा क्यों? भीम अर्जुन को जीवित क्यों नहीं कर देते? युधिष्ठिर ने कहा कि महाराज कुंती और माद्री हमारी दो माताएं हैं, मैं कुंती का पुत्र हूं और सहदेव माद्री का पुत्र है, यदि दोनों माताओं के एक-एक पुत्र जीवित रहेंगे तो उनकी आत्मा को शांति मिलेगी. इस उत्तर से यक्ष और भी प्रसन्न हुआ और उसने सभी भाइयों को जीवनदान दिया.

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यक्ष ने धर्मराज का रूप धारण किया और कहा कि मैं तुम्हारी बुद्धि से प्रसन्न हूं और तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि अज्ञात वर्षों में तुम्हें सफलता मिलेगी. मैंने ही मृग का रूप धारण कर यज्ञ को चुराया था जिस दिन से भीम ने सूर्यकुंड से बिना आज्ञा के अमृत जल ग्रहण किया था उस दिन नियम भंग करने के कारण तुम्हारे बल और बुद्धि की परीक्षा लेना आवश्यक था. यक्ष की आज्ञा लेकर यहाँ के जल का स्पर्श करने से प्रश्नों के उत्तर देने की बुद्धि तुरन्त जाग्रत हो जाती है.

वर्तमान में इस झील के पास है एक मंदिर

वर्तमान में इस झील के पास एक मंदिर भी है. इस सूर्य कुंड में हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. सूर्य कुंड में मौजूद महंत बाबा बिहारी दास ने कहा कि यह महाभारत काल से भी पुराना सरोवर है जिसे अब सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है. यहां स्नान करने मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके लिए सीधे स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं. यदि किसी व्यक्ति को चर्म रोग हो तो इस कुंड में स्नान करने से उसके सारे रोग और दोष दूर हो जाते हैं.

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