करनाल | कल्पना चावला का नाम तो आपने सुना ही होगा. जिस करनाल की बेटी कल्पना चावला ने 20 साल पहले आसमान में उड़ान भरी थी, उसी करनाल के देवीपुर गांव की बेटियों को कॉलेज पहुंचने में 75 साल लग गए थे. गांव की दूसरी लड़कियों ने भी कॉलेज में पढ़ने का सपना देखा था लेकिन नैना की जिद ने उनकी राह खोल दी.
अब गांव की 15 लड़कियां नैना के साथ कॉलेज जा रही हैं. सभी के लिए बस की व्यवस्था की गई है. हालांकि, गांव के रास्ते में बने पुल के कारण अभी भी समस्या बनी हुई है जिस पर दिनभर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है. ग्रामीणों की मांग के बाद यहां पुलिस पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई है. घरौंदा क्षेत्र के देवीपुर गांव की आबादी करीब दो हजार है.
नैना ने बदली किस्मत
देवीपुर और गढ़ी बराल मिलकर एक पंचायत बनाते हैं. नैना ने बताया कि उसे शुरू से ही पढ़ाई का शौक रहा है. उन्हें डर था कि आज तक उनके गांव की कोई लड़की कॉलेज नहीं गई है. उसे अपने मजदूर पिता और ग्रामीणों को कॉलेज जाने देने के लिए राजी करना पड़ता है.
पढने की ये रखी शर्त
पिता को डर था कि कहीं शहर और कॉलेज में जाकर बेटी बिगड़ न जाए. शहर के लिए सार्वजनिक परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं थी. नैना अपने पिता को विश्वास दिलाती है कि अगर उसने कुछ गलत किया तो वह कोई भी सजा स्वीकार करेगी. उन्हें हिदायत दी गई थी कि किसी से ज्यादा बात न करें और फोन का बिल्कुल भी इस्तेमाल न करें.
दस बहनें भी पढ़ रहीं स्कूल
इसके बाद, पिता मान गए. मुख्य दंडाधिकारी जसबीर व एनजीओ के सहयोग से ग्रामीणों को बेटियों की पढ़ाई के लिए प्रेरित किया. उसने गाँव से शहर के लिए बस की व्यवस्था की. तब गांव की 15 लड़कियां ही कॉलेज पहुंच सकीं. सभी ने पिछले साल करनाल व बसताड़ा स्थित कॉलेज के बीए कोर्स में प्रवेश लिया है. नैना बताती हैं कि उनके अलावा उनकी दस बहनें हैं. सभी गांव के स्कूल में पढ़ रही हैं. अब उसकी दस बहनों के साथ गांव की बाकी लड़कियां भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं.
पुल पर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा
गांव के सरपंच कृष्णा ने बताया कि शहर तक पहुंचने के लिए पुल से होकर गुजरना पड़ता है. जिनका कार्यकाल पांच साल पहले ही पूरा हो चुका है. इस पुल पर दो गांवों के असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है. जो लड़कियों पर पत्थर फेंकने के साथ ही भद्दे कमेंट्स करते हैं. पुलिस से शिकायत के बाद अब पुल पर पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई है जिससे कुछ राहत मिली है.
ज्योति ने निभाई अहम भूमिका
नैना की तरह गढ़ी खजूर गांव की ज्योति भी इस दौर से गुजर चुकी हैं. ज्योति 12वीं के बाद शहर के एक कॉलेज में दाखिला लेने वाली इकलौती लड़की थी. ज्योति ने बताया कि बेटियों की शादी 12वीं के बाद कर दी जाती है लेकिन उसने पढ़ने की ठान ली थी. अपने परिवार के सहयोग से, वह कॉलेज तक पहुँचने में सक्षम थी. अब वह गांव के सरकारी स्कूल में लर्निंग सेंटर चलाकर गांव की लड़कियों को पढ़ा रही हैं.
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