करनाल | हरियाणा के करनाल में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) परिसर के एक बूथ पर एक किसान का 17 वर्षीय बेटा 1975 में दूध बेचता था. दूध बेचकर उसने तीन रुपये कमाए. अब दूध बेचना उनका रोज का काम हो गया है. दरअसल, एनडीआरआई में पढ़ने वाले इस लड़के के लिए दूध बेचना पार्ट टाइम जॉब था जिससे पढ़ाई का खर्चा निकल जाता था. 22 साल बाद समय ने करवट ली और इस लड़के ने अपनी डेयरी कंपनी की नींव रख दी.
इस लड़के का नाम नारायण मजूमदार है. वह मजूमदार रेड काउ डेयरी के मालिक हैं जो पूर्वी भारत की सबसे बड़ी डेयरी है. इस डेयरी कंपनी का सालाना टर्नओवर 800 करोड़ रुपए से ज्यादा है. यह कंपनी दूध, दही, घी, पनीर और रसगुल्ले के अलावा और भी कई दूध से बने उत्पाद बेचती है.
ऐसे किया संघर्ष
नारायण मजूमदार का जन्म 15 जुलाई 1958 को पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में हुआ था. वह तीन भाई-बहनों में दूसरे नंबर का था. पिता बिमलेंदु मजूमदार किसान थे और मां बसंती मजूमदार गृहणी थीं. वर्ष 1975 में उन्होंने बीएससी में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा में डेयरी प्रौद्योगिकी दाखिला लिया. दस कोर्स की फीस 250 रुपये थी. जो मजूमदार के लिए बहुत ज्यादा था.
पढ़ाई संघर्ष से की पूरी
उन्होंने पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए पार्ट टाइम जॉब के तौर पर सुबह 5 बजे से 7 बजे तक दूध बेचना शुरू किया. इससे उसे तीन रुपये मिलते थे. हालाँकि, जल्द ही उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार से 100 रुपये की छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हो गई. पापा भी हर महीने घर से 100 रुपये भेजते थे. बावजूद इसके परिवार को पढ़ाई के लिए एक एकड़ जमीन बेचनी पड़ी. मजूमदार ने वर्ष 1979 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने बी.एससी डेयरी प्रौद्योगिकी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की.
स्टेशन पर पिता लालटेन लेकर करते थे इंतजार
अपनी डिग्री पूरी करने के बाद मजूमदार कोलकाता लौट आए और उन्हें क्वालिटी आइसक्रीम में एक रसायनज्ञ के रूप में नौकरी मिली. इस नौकरी में उन्हें हर महीने 612 रुपये सैलरी मिलती थी. लेकिन गांव से ऑफिस पहुंचने के लिए उन्हें शाम 5 बजे ट्रेन पकड़नी थी और रात 11 बजे लौटना था. पिता हर रात स्टेशन पर लालटेन लेकर उसका इंतजार करते थे. तीन महीने में ही वह इस काम से ऊब गया और उसने इसे छोड़ दिया.
इसके बाद, उन्हें सिलीगुड़ी में हिमालयन को-ऑपरेटिव में नई नौकरी मिल गई. फिर साल 1981 में उन्होंने मदर डेयरी और फिर 1985 में डेनिश डेयरी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में नौकरी शुरू की. इसमें भी तीन महीने काम करने के बाद वह घर लौट आया. वह अपने परिवार के करीब रहना चाहता था. इसके बाद उन्होंने 1995 में हावड़ा में ठाकोर डेयरी प्रोडक्ट्स में सलाहकार महाप्रबंधक के रूप में काम करना शुरू किया. यहां उन्होंने साइकिल से खुद दूध इकट्ठा करना शुरू किया. यहां उन्हें खूब ख्याति मिली.
साल 2000 में उन्होंने 500 लीटर क्षमता का पहला दूध का टैंकर खरीदा. फिर 2000 में प्रोपराइटरशिप फर्म को पार्टनरशिप कॉरपोरेशन में बदल दिया गया. इसमें उसने अपनी पत्नी को पार्टनर बनाया था. आखिरकार साल 2003 में उन्होंने “रेड काउ डेयरी” नाम से एक कंपनी शुरू की.
आज करोड़ों का है बिजनेस
रेड काउ डेयरी को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए उन्होंने कोलकाता डेयरी के साथ करार किया और रेड काउ पॉली पाउच लॉन्च किया. इसी साल उनका बेटा नंदन भी अपने पिता के कारोबार से जुड़ गया. आज के समय में रेड काउ डेयरी के तीन उत्पादन कारखाने हैं. इस फर्म से बंगाल के 12 जिलों के तीन लाख से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं. कंपनी का सालाना टर्नओवर 800 करोड़ से ज्यादा है.
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