चरखी दादरी | जब सरकार किसी की नहीं सुनती तो क्या फायदा. एड़ियां घिस गई हैं. 52 साल से यहां कोई नहीं सुनता. 1971 में भारत- पाक युद्ध के दौरान चरखी दादरी के डालावा गांव के शहीद बीएसएफ के उमेद सिंह की पत्नी ये बातें कहते हुए काफी दुखी हुईं. आंखों में गुस्सा और मन में नाराजगी थी. सरकार के खिलाफ भी और व्यवस्था के खिलाफ भी. कहा सरकार से सम्मान तो दूर कर्ज लेकर शहीद स्मारक बनाना पड़ा. पति को सिर्फ नाम का वीर चक्र मिला है दफ्तरों के चक्कर लगाने पर भी आश्वासन ही मिलता है.
शहीद उमेद सिंह की पत्नी शहीद विधवा लक्ष्मी देवी ने गांव डालावा में खुलकर अपनी नाराजगी व्यक्त की. कहा कि आज तक बेटे को न तो जमीन दी और न ही नौकरी. बीएसएफ की ओर से कई बार पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी के अलावा जमीन देने के लिए सरकार को पत्र जारी किए गए, लेकिन 52 साल से सिर्फ आश्वासन ही मिला.
सरकारी सम्मान के इंतजार में अब बूढ़ी हो गई हूं, सैनिक बोर्ड से लेकर बीएसएफ मुख्यालय तक, गांव के सरपंच से लेकर सीएम और केंद्रीय मंत्रियों तक गुहार लगाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. शहीद विधवा लक्ष्मी देवी आंखों में आंसू लिए वीर चक्र विजेता शहीद उमेद सिंह से जीवन के अंतिम पड़ाव में अपने पोते के लिए सम्मान और नौकरी की गुहार लगा रही हैं.
दुश्मन की गोलाबारी में शहीद हुए थे उमेद सिंह
चरखी दादरी के गांव डालावा निवासी उमेद सिंह 1963 में बीएसएफ में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे. सेना में रहते हुए उन्होंने जम्मू- कश्मीर में दुश्मनों से कई लड़ाइयों में भी हिस्सा लिया. 1971 के भारत- पाक युद्ध के दौरान जम्मू के कमला में फ्रंट ड्यूटी की बमबारी में 18 दिसंबर 1971 को वीरगति को प्राप्त हुई. शहीद उमेद सिंह श्योराण को केंद्र सरकार ने शहीद विधवा लक्ष्मी देवी को वीर चक्र से सम्मानित किया.
अजय चौटाला ने शहीद स्मारक का किया था अनावरण
तत्कालीन राज्यसभा सांसद अजय चौटाला ने 6 मई 2007 को शहीद उम्मेद सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया था और शहीद के परिवार को आश्वासन दिया था कि वीर चक्र से सम्मानित शहीद को पूरा सम्मान देने के साथ ही केंद्र और राज्य सरकार की ओर से सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. शहीद विधवा ने बताया कि उन्हें न तो सम्मान मिला और न ही सुविधाएं.
पोते को मिले नौकरी
शहीद उमेद सिंह के पुत्र सुनील कुमार ने बताया कि राजस्थान में 25 बीघा जमीन देने की बात कही गई थी लेकिन नहीं मिली. पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी को लेकर सेना से सरकार को पत्र भी मिला लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. हर बार अधिकारियों द्वारा फाइलें बंद कर दी जाती थीं. अगर सरकार ने उन्हें नौकरी नहीं दी तो उनके बेटे को ही नौकरी मिलनी चाहिए.
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