पानीपत | ऐतिहासिक शहर पानीपत का इतिहास केवल तीन युद्धों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें कई ऐसी कहानियां समाहित हैं जिनसे लोग आज भी अनजान हैं. ऐसी ही एक कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं. पानीपत के कलंदर बाजार के बीचो- बीच बनी बू अली शाह कलंदर की दरगाह की यह कहानी है जिसे देश- विदेश के लोग पूरी आस्था के साथ देखते हैं. बू अली शाह कलंदर की दरगाह पर दुनिया भर से लोग आते हैं.
122 वर्ष की आयु में हुई थी मृत्यु
कलंदर शाह का जन्म पानीपत में हुआ था, उनका नाम शरफुद्दीन था. कलंदर शाह का जन्म 1190 ईस्वी में हुआ था और 1312 ईस्वी में 122 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई थी. हालांकि, उनके माता- पिता इराक के निवासी थे. बाद में वह भारत आ गए. उनकी ट्रेनिंग पानीपत से ही हुई थी. कलंदर शाह के पिता शेख फखरुद्दीन अपने समय के एक महान संत और विद्वान थे. उनकी मां हाफिजा जमाल भी धार्मिक थीं.
जन्म स्थान को लेकर अलग- अलग मान्यताएं
कलंदर शाह के जन्म स्थान को लेकर अलग- अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म तुर्की में हुआ था तो कई लोग अजरबैजान को बताते हैं. अधिकांश लोगों के अनुसार, पानीपत उनका जन्म स्थान है. कलंदर शाह की प्रारंभिक शिक्षा पानीपत में हुई. कुछ दिनों के बाद वह दिल्ली चला गया और कुतुब मीनार के पास रहने लगे. अपने ज्ञान को देखकर साधु के कहने पर वह भगवान की पूजा करने लगे. 36 साल तक लगातार पूजा करने के बाद उन्हें अली की महक मिली. इसलिए उनका नाम शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर पड़ गया.
मौसम बताने वाला पत्थर दरगाह में मौजूद
पानीपत की इस दरगाह पर आज भी जिन्नातों द्वारा लगाए गए अनोखे पत्थर हैं. आपको बता दें कि यहां मौसम बताने वाले पत्थर और सोने की परख करने वाले पत्थर और जहर मोहरा नाम के पत्थर हैं. जहर जहरीला सांप या कोई अन्य जहरीला जीव अगर किसी व्यक्ति को काट ले तो यह पत्थर इंसान के शरीर से सारे जहर को बाहर निकाल देता है. यही कारण है कि यहां पर लोगों की अकसर भारी भीड़ देखने को मिलती है. बता दे यहाँ विदेशों से भी लोग आते हैं.
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