सरकार की बढ़ रही टेंशन, किसान आंदोलन के समर्थन में उतरे जाट

नई दिल्ली | किसान आंदोलन एक बार फिर से व्यापक रूप ले रहा है. यहां हम आपको विशेष रूप से बता दे कि लगातार बैठकों का दौर अभी भी जारी है, चाहे वह खाप पंचायतें हो या फिर जाट महापंचायत. इस समय पर सभी किसानो के समर्थन के लिए हर दिन नई नई घोषणाएं कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर एक बार फिर से सरकार की टेंशन बढ़ने लगी है. ऐसे में यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि किसान आंदोलन ने एक बार फिर से भाजपा की मुशकिलें बढ़ा दी हैं. महापंचायत में शामिल हुए किसानों की भारी संख्या ने सभी को चौंका कर रख दिया है.

Kisan Andolan Farmer Protest

राकेश टिकैत के आंसुओं को देखने के बाद हरियाणा व उत्तर प्रदेश के जाट दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर समय रहते समर्थन के लिए पहुंच गए थे. यह भाजपा के लिए मुख्य रूप से चिंता की बात हो सकती है, क्योंकि जाटों के आंदोलन में भी इस प्रकार से भारी संख्या में लोगों के शामिल होने से राजनीतिक स्तर पर काफी हानि हुई थी.

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जाटों का किसान आंदोलन में शामिल होना, भाजपा के लिए बना खतरा

यहां आपको मुख्य रूप से जानकारी दें दे कि जाट महापंचायत में किसानों का समर्थन करने का फैसला ले लिया है, इस महापंचायत में कुल दस हजार से भी ज्यादा किसानों की ने उपस्थिति दर्ज करवाई है. वहीं, उत्तर प्रदेश में हुई इस बैठक में हरियाणा के कुछ जाट भी मौके पर मौजूद रहे थे और कुछ दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर की ओर अपना रुख करने में व्यस्त थे. किसान समर्थन में जाटों का इस प्रकार से उतरना, भाजपा के लिए खतरे का संकेत साबित हो सकता है. वहीं, ज्यादातर लोग इसे खतरे के रूप में ही देख रहे हैं.

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किसान नेता के आंसू बने मोती

वर्तमान स्थिति की बात करें तो, बीते लगभग 2 महीनों से केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर बैठे किसानों का आंदोलन अब कुछ ही दिनों पहले गणतंत्र दिवस के अवसर के बाद कमजोर पड़ गया है. ऐसे में अब तमाम बॉर्डरों से किसान धीरे धीरे उठने लगे हैं और साथ ही साथ कहा जा सकता हैं कि ज्यादातर किसान अब वापसी की ओर बढ़ रहे हैं किन्तु, चंद ही मिनटों में यह तस्वीर तब बदल गई जब भारतीय किसान यूनियन के नेता के आंसू पूरे देश ने देखे.

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तभी से दिल्ली बॉर्डरो की यह तस्वीर एक बार फिर पलटकर पुरानी तस्वीर में तब्दील हो गई है. वही अब कुछ लोगों का कहना है कि किसान नेता राकेश टिकैत के आंसू हमारे लिए बहुत कीमती हैं क्योंकि, वह सिर्फ हम किसानों के लिए लड़ रहे हैं. वहीं, अब किसानो का कहना हैं कि हर हालत में हम यह कानून जरूर रद्द करवाएंगे.

एक ओर राजनीतिक टिप्पणीकार मनीषा प्रियम जी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि सिखों और जाटों का एक साथ आना एक संदेश है कि पहचान की राजनीति अब काफ़ी नहीं है.

 

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