चंडीगढ़ | हरियाणा में चावल की सीधी बुआई (DSR) विधि से किसान अब ज्यादा मात्रा में खेती करने लगे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जहां 2021 में सिर्फ 17,000 एकड़ में इस विधि से चावल की खेती की गई थी वो बढ़कर इस साल 3.6 लाख एकड़ तक पहुंच गई है. किसानों को वैकल्पिक फसलों के लिए ज्यादा प्रोत्साहन मिल रहा है लेकिन किसान धान छोड़ने को तैयार नहीं हैं. इसलिए हरियाणा सरकार ने अब किसानों को डीएसआर के लिए ल प्रोत्साहित करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है. सरकार ने धान की बुआई के चालू सीजन के दौरान डीएसआर के तहत, दो लाख एकड़ क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य रखा है. हालांकि, पंजीकरण को मिली प्रतिक्रिया से अधिकारियों का कहना है कि वे आसानी से लक्ष्य को पार कर लेंगे.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए हरियाणा के कृषि और किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल ने कहा, “डीएसआर की प्रतिक्रिया के साथ हम उम्मीद कर रहे हैं कि डीएसआर के तहत क्षेत्र अगले साल दोगुना होने की संभावना है. यदि कोई किसान डीएसआर का विकल्प चुनता है तो यह धान की पोखर रोपाई (पीटीआर) की पारंपरिक विधि के लिए पानी की आवश्यकता की तुलना में आधा पानी बचाता है.”
DSR चुनने पर किसानों को मिलेगी प्रोत्साहन राशि
दलाल ने कहा कि हम डीएसआर चुनने पर 4,000 रुपये प्रति एकड़ का प्रोत्साहन देते हैं. हालांकि, डीएसआर को श्रम की आवश्यकता नहीं है, लेकिन खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए खरपतवारनाशकों के कई स्प्रे की आवश्यकता होती है. पीटीआर में बाढ़ सिंचाई एक खरपतवारनाशी के रूप में कार्य करती है.
अधिकारियों का कहना है कि वित्तीय प्रोत्साहन के साथ श्रमिकों की कमी ने किसानों को इस वर्ष डीएसआर अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है. राज्य सरकार की द्विवार्षिक एकीकृत जल संसाधन कार्य योजना के अनुसार, सरकार ने 4.75 लाख एकड़ में धान की सीधी बुआई का लक्ष्य रखा है. जिससे अगले दो वर्षों में 1.18 लाख करोड़ लीटर (8.4 प्रतिशत) की बचत होगी.
धान की खेती से होती है अच्छी कमाई
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हाल ही में कहा कि राज्य की कुल पानी उपलब्धता 20,93,598 करोड़ लीटर है जबकि कुल पानी की मांग 34,96,276 करोड़ लीटर है. जिससे पानी का अंतर 14 लाख करोड़ लीटर है. खट्टर ने कहा कि कृषि और बागवानी क्षेत्र में सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है, जो क्रमश: 86 फीसदी और 5 फीसदी है. उन्होंने कहा कि जल संरक्षण के तरीकों को अपनाकर पानी की खपत को कम करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है.
जल संरक्षण के लिए ‘मेरा पानी- मेरी विरासत’ योजना भी 2020 में शुरू की गई थी. इस योजना के तहत किसानों को दालें, कपास, मक्का और बागवानी चुनने के लिए 7,000 रुपये प्रति एकड़ का प्रोत्साहन दिया जाता है, जिसमें सब्जियां और फल शामिल हैं. दलाल ने कहा कि यह सच है कि किसान धान छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि प्रति फसल सीजन में लगभग 70,000 रुपये का उत्पादन होता है. इस साल बासमती चावल की कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं.
अनुबंध प्रणाली फसल विविधीकरण के लिए बड़ी चुनोती
दलाल ने पहले कहा था कि भूमि पर खेती के लिए अनुबंध प्रणाली फसल विविधीकरण के लिए एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जो किसान केवल एक वर्ष के लिए जमीन लेता है वह उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग करके भूमि से अधिकतम उत्पादन करना चाहता है. आधे से अधिक भूमि पर खेती अनुबंध प्रणाली के तहत की जा रही है. जिसके तहत, भूमिहीन या जिनके पास जमीन के बहुत छोटे टुकड़े हैं, वे हरियाणा में खेती के लिए वार्षिक अनुबंध पर जमीन लेते हैं.
जैसे वे परिवार जिनके सदस्यों को सरकारी नौकरी मिलती है, वे खेती के लिए अपनी ज़मीन ठेके पर देना पसंद करते हैं. यह वार्षिक अनुबंध मूल्य संबंधित भूमि की गुणवत्ता और स्थान को ध्यान में रखते हुए 10,000 रुपये से 70,000 रुपये प्रति एकड़ तक है. हम इस बात पर विचार कर रहे हैं कि इन किसानों को गेहूं- धान चक्र छोड़ने के लिए कैसे मनाया जाए. फिर भी सरकार ने हरियाणा में कुल उपलब्ध पानी का 1.05 लाख करोड़ लीटर (7.6 प्रतिशत) बचाने के लिए अगले दो वर्षों में 3.14 लाख एकड़ जमीन को ‘मेरा पानी- मेरी विरासत’ योजना के तहत लाने का लक्ष्य रखा है.
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