मोना रंधावा के संघर्ष की कहानी: हाथों में डेढ़ साल की बेटी, फिर हालातों ने बना दिया आर्मी अफसर

नई दिल्ली | जब सेना की महिला मोटरसाइकिल रैली नई दिल्ली से चलकर मंगलवार को अंबाला पहुंची. इस रैली में 25 महिला सवारों में से एक- दो वीरांगनाएं भारत माता की जय के नारे भी लगा रही थीं. इन्हीं में से एक थीं पंजाब के तरनतारन की रहने वाली मोना रंधावा जो सेना में कर्नल पद से रिटायर हुई हैं. जब उन्होंने अपनी कहानी शेयर की तो हर कोई हैरान रह गया. सेवानिवृत्त कर्नल मोना रंधावा ने बताया कि वह पंजाब के तरनतारन की रहने वाली हैं.

Mona Randahwa

बचपन में सड़क पर खड़ें होकर सेना के ट्रकों की ओर हिलाती थी हाथ

पहले वह एक नागरिक की तरह अपनी जिंदगी जी रही थीं. कभी सेना में भर्ती होने के बारे में नहीं सोचा था. जब बच्चे स्कूल में होते थे तो सेना की गाड़ियों को देखने के लिए सड़क पर खड़े होकर हाथ हिलाते थे. इसके बाद, उन्होंने चंडीगढ़ से कॉलेज की पढ़ाई की. इसके बाद 1994 में उन्होंने मेजर सुखबिंदर सिंह रंधावा से शादी कर ली.

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1995 में हुआ सिमरन का जन्म

1995 में बेटी सिमरन का जन्म हुआ. इसके बाद, पति की पोस्टिंग आरआर में हो गई. सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी साल 1997 में खबर आती है कि उनके पति मेजर सुखबिंदर सिंह आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए हैं. मोना कहती हैं कि 27- 28 साल की उम्र में आप ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं कर सकते. तब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी डेढ़ साल की बेटी को क्या जवाब देगी, उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ.

अब दुश्मनों को ताबड़तोड़ देना है जवाब…

शहीद पति के अंतिम संस्कार के बाद जब सब कुछ सामान्य हो गया तो समझ नहीं आ रहा था कि अपनी डेढ़ साल की बेटी को कहां ले जाऊं, कैसे आगे बढ़ूं. उन्होंने बताया कि इसके बाद उन्होंने अपने परिवार से चर्चा की, तब किसी को ज्यादा जानकारी नहीं थी कि महिलाएं सेना में जाती हैं या नहीं. सेना ने नौकरी के लिए कुछ जगहें बताईं लेकिन उनके मन में एक ही इच्छा थी कि अब दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देना है.

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बेटी सिमरन रंधावा ने भी लिखी किताब

इसमें सेना के उच्च अधिकारी की पत्नी ने उनका खूब हौसला बढ़ाया. ऐसे में उनके सामने दो ही बाधाएं थीं, एक उम्र और दूसरी डेढ़ साल की बेटी साथ में थी. फिर भी सेना के लोगों ने मदद की और वह एसएसबी पास कर सेना में प्रवेश पाने में सफल रहीं. इस दौरान वह कई ऑपरेशन में शामिल रहीं. अब वह सेना से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं. वहीं, उनकी बेटी सिमरन रंधावा ने भी एक किताब लिखी है. जिसमें बताया गया है कि जब कोई शहीद होता है तो उसके पीछे उसका परिवार किस तरह संघर्ष करता है.

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61 साल की सीमा महिलाओं में भर रही जोश

रैली में बाइक चलाकर अंबाला पहुंची 61 वर्षीय सीमा वर्मा बताती हैं कि उनके पति नौसेना में अंडमान निकोबार कमांड में कमांडर- इन- चीफ के पद पर तैनात थे. वह खुद पायलट को ट्रेनिंग देती थीं. हाल ही में, सेवानिवृत्त हुए तो मोटरसाइकिल रैली में शामिल होने का यह अच्छा अवसर मिला. मुझे लगता है कि जब कोई एक बाइक पर इतनी सारी लड़कियों को देखेगा तो लोगों को खुद अपनी बेटियों पर गर्व होगा. लड़कियों को भी प्रेरणा मिलेगी. इस बाइक रैली में 23 साल की लड़की के साथ 61 साल की महिला भी शामिल है.

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