करनाल | भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल ने देश के मध्य और पूर्वी राज्यों के लिए गेहूं की 2 किस्में विकसित की हैं. इनमें DDB-55 और DBW-316 शामिल हैं. खासियत यह है कि यह अन्य किस्मों की तुलना में आधे पानी में तैयार हो जाएगी. इन्हें मध्य, उत्तर मध्य और पूर्वी भारत की जलवायु के अनुरूप डिजाइन किया गया है. डीडीबी 55 मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात के लिए सबसे उपयुक्त किस्म है. बीज का वितरण 1 नवंबर से शुरू होगा. बीज का वितरण पहले आओ- पहले पाओ के आधार पर किया जाएगा. 112 से 120 दिन में दोनों फसलें सिंचाई के तहत पककर तैयार हो जाएंगी.
आखिर कैसे बचाया जाएगा पानी?
संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि डीडीबी- 55 को खासतौर पर भूजल बचाने के लिए तैयार किया गया है. इसकी जड़ें अन्य किस्मों की तुलना में लंबी होती हैं क्योकि इसमें मिट्टी और वातावरण से नमी को अवशोषित करने की उच्च क्षमता होती है. दोनों किस्मों में गर्मी के प्रति उच्च सहनशीलता है. मध्य भारत में उत्तरी राज्यों की तुलना में तापमान अधिक है. यही कारण है कि दोनों किस्मों को स्थानीय परिवेश में आजमाया गया, जिसके बाद यह प्रयोग सफल रहा है. यह किस्म बिमारियो से भी लड़ने में सक्षम है जिससे किसानों का खर्च भी कम होगा. डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि डीबीबी 55 के साथ अन्य किस्मों का भी वितरण किया जाएगा. करनाल के साथ- साथ भोपाल स्थित संस्थान में भी किस्मों का वितरण किया जाएगा.
प्रारंभिक किस्म है DDB
IIWBR उप. निदेशक ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि डीडीबी 55 किस्म अगेती है. यह फसल 112 दिन में पककर तैयार हो जाती है. गेहूं की फसल के लिए सामान्यतः चार से पांच सिंचाई की आवश्यकता होती है. इसके बाद, किसान किसी अन्य फसल की खेती कर सकता है. इससे उसका मुनाफ़ा भी बढ़ेगा. बता दें कि कम पानी में गेहूं की फसल उगाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न राज्यों के पर्यावरण पर शोध किया गया. मध्य भारत में पानी की कमी के कारण डी डीबी 55 को विशेष रूप से डिजाइन किया गया है.
पूर्वी भारत के लिए सबसे उपयुक्त है DBW 316
ज्ञानेंद सिंह ने बताया है कि संस्थान ने पूर्वी भारत के क्षेत्र के लिए डीबीडब्ल्यू 316 किस्म विकसित की है. यह किस्म बेहतर पैदावार देने के साथ- साथ बीमारियों से लड़ने में भी सक्षम है. अगले सत्र से बीज का वितरण किया जायेगा. इसमें पानी भी कम लगेगा. गेहूं की फसल में आमतौर पर चार से पांच बार सिंचाई की जाती है. मध्य और पूर्वी भारत की जलवायु के लिए उपयुक्त DDV- 55 और DVW 316 है.
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