चंद्रयान 3 इतिहास रचने की ओर: लैंडिंग में आखिर के 15 मिनट सबसे अहम, यहाँ समझे कैसे उतरेगा चंद्रयान

नई दिल्ली | चंद्रयान 3 इतिहास रचने से बस कुछ ही घंटे दूर है. शेड्यूल के मुताबिक, आज शाम 5 बजे के बाद इसरो चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतारने की तैयारी कर रहा है. इस पल के लिए 40 दिनों का इंतजार करना पड़ा है. लैंडिंग की प्रक्रिया पर इस वक्त पूरे देश भर का ध्यान है. आज हम आपको बताते हैं कि चंद्रयान 3 (Chandrayaan 3) के लैंडिंग में आखिर 15 मिनट क्यों अहम है.

Chandrayaan 3

सबसे अहम हैं आखिरी के 15 मिनट

बता दें कि पिछली बार चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग में आखिरी के 15 मिनट अहम साबित हुए थे और इसरो ने मिशन की विफलता को 15 मिनट का आतंक बताया था. जब 2019 में चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग में लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा की सतह पर 2.1 किमी की ऊंचाई तक पहुंच गया, तब तक सब कुछ ठीक रहा, लेकिन उसके बाद एक छोटी सी तकनीकी खराबी के कारण लैंडर मॉड्यूल क्रैश हो गया.

इसरो के वर्तमान अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि Chandrayaan 3 लैंडर मॉड्यूल के साथ ऐसी दुर्घटना को रोकने के लिए सभी इंतजाम किए गए हैं. अगर छोटी सी भी त्रुटि होती है, तो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 लैंडर को सतह पर भेजने का फैसला किया है. लैंडिंग के लिए सभी सावधानियां बरती जाती हैं.

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चंद्रमा पर उतरना पृथ्वी पर उतरने के समान नहीं है. किसी विमान या वस्तु के धरती पर उतरने का दृश्य याद करें. विमान धीरे- धीरे ऊंचाई से आगे और नीचे सरकता है और रनवे पर उतरता है. हवाई जहाज से कूदने वाले स्काई डाइवर्स पैराशूट की मदद से सुरक्षित रूप से जमीन पर उतरते हैं. ये दोनों प्रक्रियाएँ पृथ्वी पर संभव हैं लेकिन चंद्रमा पर संभव नहीं हैं. चूंकि, चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है इसलिए हवा में उड़कर नहीं बल्कि पैराशूट की मदद से लैंडर को उतारना संभव है.

चंद्रयान 3 की ये है खासियत

इसके लिए चंद्रयान-3 के लैंडर में रॉकेट लगाए गए हैं. इन्हें प्रज्वलित करने के बाद लैंडर की गति को नियंत्रित कर वैज्ञानिक रूप से धीमी गति से सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया जाता है. लाखों मील दूर मंगलयान का नियंत्रण भी पृथ्वी पर गहरे अंतरिक्ष नेटवर्क से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है. Chandrayaan 3 के उड़ान भरने से लेकर चंद्रमा की सतह पर उतरने तक इसरो वैज्ञानिक बूस्टर जलाकर इसकी दिशा और गति को नियंत्रित करते रहे हैं.

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हालाँकि, लैंडिंग के दौरान इसे इस तरह से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. इसीलिए इसे स्वचालित रूप से अपने आप नीचे उतरने के लिए प्रोग्राम किया गया है. चंद्रयान 2 में भी ऐसी ही व्यवस्था की गई थी. चंद्रयान-3 का लैंडर लंबी गोलाकार कक्षा में चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है. चंद्रमा की सतह से सौ किलोमीटर ऊपर से गुजरने के बाद, यह चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव में लाने के लिए अपने बूस्टर को प्रज्वलित करता है. इसके बाद, यह चंद्रमा की सतह की ओर तेजी से गिरने लगता है.

जब यह गिरने लगती है तो इसका वेग बहुत अधिक होता है. पृथ्वी से चंद्रमा तक एक रेडियो सिग्नल भेजने में लगभग 1.3 सेकंड का समय लगता है. उसी सिग्नल को दोबारा जमीन तक पहुंचने में 1.3 सेकंड का समय लगता है. इस प्रकार, चंद्रयान (Chandrayaan 3) लैंडर पृथ्वी पर एक सिग्नल भेजता है और प्रतिक्रिया में, दूसरे सिग्नल को उस तक पहुंचने में 1.3 सेकंड का समय लगता है. इसका मतलब है कि इसे पूरा होने में लगभग ढाई सेकंड का समय लगता है.

यानी कई सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चंद्रमा पर गिर रहे लैंडर को नियंत्रित करने में ढाई सेकंड का समय लगता है. इस अतिरिक्त समय के कारण लैंडर को ऐसा बनाया जाता है कि लैंडर अपने फैसले खुद लेता है. ऐसे प्रयासों में सब कुछ तकनीकी रूप से सही होना चाहिए अन्यथा छोटा सा अंतर भी समस्या पैदा कर सकता है.

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साइंटिस्ट ने कही ये बात

साइंटिफिक प्रेस ऑर्गेनाइजेशन के मास्टर साइंटिस्ट डॉ. टी. वी. वेंकटेश्वरन ने बताया कि 100 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंडर को चंद्रमा की सतह पर उतारने की 15 मिनट की प्रक्रिया आठ चरणों में पूरी की जाएगी. सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया तब शुरू होगी जब यह 100 किमी से 30 किमी की ऊंचाई से नीचे नहीं उतरेगा. तब तक लैंडर के पैर चंद्रमा की सतह की क्षैतिज स्थिति में हैं फिर गति को और कम करने के लिए लैंडर में रॉकेट दागे जाएंगे.

जब लैंडर 30 किमी की ऊंचाई पर होता है तो उसकी गति बहुत तेज होती है. उस गति को नियंत्रित करते हुए यह चंद्रमा की सतह से 7.4 किमी की ऊंचाई तक पहुंच जाता है. 100 किमी की ऊंचाई से यहां पहुंचने में दस मिनट का समय लगता है. इसे पहला कदम कहा जा सकता है.

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