सोनीपत | हरियाणा की खट्टर सरकार वैसे तो राज्य में खेल नीति को और सबसे बेहतर बनाने के प्रयास में रहती है लेकिन आज इस खबर में हम आपको रूबरू कराएँगे सोनीपत के एक शूटर खिलाडी से. जो इन दिनों अपनी आर्थिक स्थिति से काफी परेशान है और अपने घर का भी गुजारा नही कर पा रहे है. चलिए जानते है पूरी खबर…
मेडल जीतने के बावजूद सरकार को नहीं परवाह
दरअसल, सोनीपत के गांव कबीरपुर के रहने वाले 20 वर्षीय शूटर अंकुर के संघर्ष को देखकर आप इन दावों और बातों पर विश्वास करना भूल जाएंगे. अंकुर शूटिंग प्रतियोगिता में नेशनल स्तर पर पदक जीत चुका है लेकिन फिर भी सरकार की ओर से अंकुर की अनदेखी की जा रही है. अंकुर के संघर्ष की कहानी जानकर आपकी आंखें आंसुओं से भर जाएंगी.
राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में जीत चुके मेडल
नेशनल शूटर अंकुर की आर्थिक हालत इतनी ज्यादा गंभीर है कि उन्हें अपना जीवन यापन करने के लिए सब्जियां व फल बेचकर गुजारा करना पड़ रहा है. सोनीपत के गांव कबीरपुर के रहने वाले अंकुर सैनी साल 2023 में पुणे में आयोजित राष्ट्रीय ओपन शूटिंग प्रतियोगिता में रजत पदक जीत चुके हैं और फिलहाल जूनियर शूटिंग रैंकिंग चार पर हैं. अंकुर के पास घर चलाने के लिए पैसों का इंतजाम नहीं है. यहां तक कि उनके पास शूटिंग के लिए उपकरण खरीदने के लिए भी पैसे नहीं है लेकिन फिर भी उनको सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही.
आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद हौसला मजबूत
अंकुर के गांव के लोगों का कहना है कि साल 2014 में जब उन्होंने शूटिंग की शुरुआत की थी तो उनके जज्बे की तारीफ गांव में हर कोई व्यक्ति करता था. अभी भी गांव में अंकुर की काफी तारीफें होती हैं. इन दिनों अंकुर के परिवार के हालात उन्हें खेलने के लिए मना कर रहे हैं, लेकिन उनके जज्बे के आगे माता- पिता भी उनका साथ देने के लिए मजबूर हैं.
सब्जियां व फल बेचने का काम करता है अंकुर
अंकुर के पिता के पास करोड़ों रुपए से भरा बैग नहीं है और न ही कोई बड़ा बिजनेस है, बल्कि एक सब्जियों व फलों की छोटी सी रेहड़ी है. जिस पर दोनों पिता- बेटा सब्जियां तथा फल बेचते हैं. अंकुर अपने पिता के साथ काम में हाथ बंटाते हैं ताकि परिवार का जीवनयापन चल सके और अंकुर देश के लिए मेडल ला सके. साथ ही, अंकुर शूटिंग पर भी पूरा फोकस जमाए हुए हैं.
निजी कंपनी में काम करती है अंकुर की मां
शूटर अंकुर की मां एक निजी कंपनी में काम करती है, जहां पर उन्हें कंपनी मालिक की ओर से न्यूनतम वेतन मिलता है. उनके पिता पहले दर्जी का काम करते थे, जिनकी लॉकडाउन के समय नौकरी चली गई. इसके बाद, उनके पिता अंकुर के साथ ही सब्जियों व फल बेचने का काम कर रहे हैं.
मां ने खेलने के लिए अंगूठी बेचकर भेजा पुणे
अंकुर की मां ने उन्हें पुणे खेलने के लिए प्रतियोगिता में अपनी अंगूठी बेचकर पैसे देकर भेजा लेकिन अंकुर ने मेडल जीतकर मां का कर्ज चुका दिया. उनकी मां का कहना है कि बेटा एक दिन समाज में जरूर नाम रोशन करेगा. अंकुर के पिता ने बताया कि उनको अपने बेटे से उम्मीद है, बेटा एक दिन जरूर ओलंपिक मेडल लाएगा और पूरे भारत देश का नाम रोशन करेगा.
मेडल जीता तो परिवार की बंधी उम्मीद
अंकुर बताते हैं कि 2014 में उन्होंने यह गेम खेलना शुरू किया तो धीरे- धीरे उनके परिवार वाले उन्हें यह गेम खेलने से मना करते थे क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति इस गेम को खेलने से मना कर देती थी लेकिन जब पुणे में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता तो उनके परिवार को उम्मीद होने लगी. इसके बाद, अंकुर को परिवार ने भी इस खेल के लिए साथ देना शुरू कर दिया.
कोच से मिलती है प्रेरणा: अंकुर
अंकुर ने बताया कि उनके कोच लव खत्री बहुत ही प्रतिभावान है. अंकुर की सबसे ज्यादा उनके कोच ने मदद की है. उन्होंने बताया कि उनका लव खत्री कोच के प्रति गहरा प्रेम है. कोर्ट से उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिलता है और प्रेरणा भी मिलती है.
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