Chandrayaan 3 Updates: चंद्रयान 3 के रोवर के सामने आया चौड़ा गड्ढा, फिर हुआ ये सब

नई दिल्ली | ISRO ने सोमवार को बताया कि 27 अगस्त को चंद्रयान 3 (Chandrayaan 3) के रोवर प्रज्ञान के सामने 4 मीटर चौड़ा गड्ढा आ गया था. यह गड्ढा रोवर की लोकेशन से 3 मीटर आगे था. ऐसे में रोवर को रास्ता बदलने का आदेश दिया गया है. अब यह सुरक्षित रूप से एक नई राह पर आगे बढ़ रहा है. इससे पहले भी प्रज्ञान करीब 100 मिमी गहरे एक छोटे से गड्ढे से गुजरा था. चंद्रमा पर रोवर का संचालन अर्ध- स्वायत्त है. इसे चलाने के लिए ग्राउंड स्टेशन से कमांड दिए जाते हैं.

Chandrayaan 3

14 दिनों का है चंद्रयान 3 मिशन

बता दें कि चंद्रयान 3 मिशन 14 दिनों का है. दरअसल, चंद्रमा पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक रोशनी रहती है. जब यहां रात होती है तो तापमान -100 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है. चंद्रयान के लैंडर और रोवर अपने सौर पैनलों से बिजली पैदा कर रहे हैं. इसलिए वे 14 दिनों तक बिजली उत्पादन करेंगे लेकिन रात होते ही बिजली उत्पादन प्रक्रिया बंद हो जायेगी. यदि बिजली उत्पादन नहीं होगा तो इलेक्ट्रॉनिक्स भीषण ठंड का सामना नहीं कर पाएंगे और खराब हो जाएंगे.

रोवर के डेटा के आधार पर होता है रास्ता तय

रोवर के पथ नियोजन के लिए रोवर के ऑनबोर्ड नेविगेशन कैमरा डेटा को जमीन पर डाउनलोड किया जाता है फिर ग्राउंड और मैकेनिज्म टीम तय करती है कि कौन सा रास्ता अपनाना है. इसके बाद, रोवर को पथ की जानकारी देने के लिए कमांड को अपलिंक किया जाता है. जिस तरह इंसान की आंखें एक निश्चित दूरी तक ही देख सकती हैं, उसी तरह रोवर की भी अपनी सीमाएं हैं. रोवर का नेविगेशन कैमरा केवल 5 मीटर तक की तस्वीरें भेज सकता है. ऐसे में एक बार कमांड देने पर यह अधिकतम 5 मीटर की दूरी तय कर सकता है. रोवर 1 सेमी प्रति सेकंड की गति से चलता है.

6 पहियों वाले इस रोवर का वजन 26 किलोग्राम है. गुरुवार सुबह लैंडिंग के करीब 14 घंटे बाद इसरो ने रोवर के बाहर निकलने की पुष्टि की थी. लैंडर 23 अगस्त को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा पर उतरा. यह 1 सेमी प्रति सेकंड की गति से चलता है और अपने परिवेश को स्कैन करने के लिए नेविगेशन कैमरों का उपयोग करता है.

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चंद्रमा की सतह पर तापमान में है महत्वपूर्ण अंतर

इससे पहले 27 अगस्त को चंद्रयान 3 के विक्रम लैंडर में लगे चैस्ट पेलोड ने चंद्रमा के तापमान से संबंधित पहला अवलोकन भेजा था. चाएसटीई यानी लूनर सरफेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट के मुताबिक चंद्रमा की सतह और अलग- अलग गहराई पर तापमान में काफी अंतर होता है. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस है.

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वहीं, 80 मिमी की गहराई पर माइनस 10 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया. चेस्ट में 10 तापमान सेंसर हैं, जो 10 सेमी यानी 100 मिमी की गहराई तक पहुंच सकते हैं. चाएसटीई पेलोड को भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद के सहयोग से अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला, वीएसएससी द्वारा विकसित किया गया है.

दक्षिणी ध्रुव का तापमान जानने से होगा ये लाभ

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया था कि उन्होंने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को इसलिए चुना क्योंकि यहां भविष्य में इंसानों को बसाने की क्षमता हो सकती है. दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य का प्रकाश कम समय तक रहता है. अब जब चंद्रयान 3 वहां के तापमान और अन्य चीजों के बारे में स्पष्ट जानकारी भेज रहा है, तो वैज्ञानिक अब यह समझने की कोशिश करेंगे कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी वास्तव में कितनी है.

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चंद्रयान 3 के साथ भेजे 7 पेलोड

चंद्रयान 3 मिशन के तीन भाग हैं. प्रणोदन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर इन पर कुल 7 पेलोड हैं. SHAPE नाम का एक पेलोड चंद्रयान- 3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल पर लगाया गया है. यह चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगाकर पृथ्वी से आने वाले विकिरण की जांच कर रहा है.

लैंडर पर तीन पेलोड हैं. रंभा, चैस्ट और इल्सा, प्रज्ञान पर दो पेलोड हैं. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का भी एक उपकरण है, जिसका नाम लेजर रेट्रोरेफ्लेक्टर ऐरे है. इसे चंद्रयान- 3 के लैंडर पर लगाया गया है. इसका उपयोग चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी मापने के लिए किया जाता है.

चंद्रयान- 3 के लैंडर की 4 चरणों में हुई सॉफ्ट लैंडिंग

इसरो ने 23 अगस्त को शाम 5.44 बजे 30 किमी की ऊंचाई से स्वचालित लैंडिंग प्रक्रिया शुरू की और अगले 20 मिनट में यात्रा पूरी की. चंद्रयान- 3 ने 40 दिनों में पृथ्वी की 21 बार और चंद्रमा की 120 बार परिक्रमा की. चंद्रयान ने चंद्रमा तक 3.84 मिलियन किमी की दूरी तय करने के लिए 5.5 मिलियन किमी की यात्रा की.

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