रोहतक | तरक्की के लिए इंसान दिन- रात मेहनत करता है. मगर हर किसी को कामयाबी नहीं मिल पाती है. आज हम बात करने जा रहे हैं ऐसे शख्स की जिन्होंने कभी हार नहीं मानी और आज हरियाणा में राजनीति का प्रमुख चेहरा हैं. उनका संघर्ष भरा जीवन भी काफी रोमांचक है. रोहतक के पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर (Manish Grover) की जो मुख्यमंत्री मनोहर लाल के बेहद करीबी हैं.
बंटवारे के वक्त माता-पिता 3 साल तक रहे दूर
1947 में बंटवारे के वक्त माता- पिता 3 साल तक एक- दूसरे से अलग रहे लेकिन संघर्ष के इस मुकाम पर पहुंचे की. बचपन में वे प्रतिदिन लकड़ी लेकर स्कूल से घर जाते थे और बदले में मिलने वाले चूरा से अपने परिवार का चूल्हा जलाने में मदद करते थे. पिता मजदूरी करते थे. आज वह संघर्ष करके यहां तक पहुंचे हैं और भगवान ने उन्हें लोगों की सेवा करने का मौका दिया है, इसलिए वह उनके लिए काम करते हैं. चाहे वह सत्ता में हो या सत्ता से दूर, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. रोहतक की जनता ने उन्हें आशीर्वाद दिया है और जब तक जनता उनका साथ देगी, वह इसी तरह काम करते रहेंगे.
ग्रोवर लगातार हारे थे तीन चुनाव
ग्रोवर लगातार तीन चुनाव हार गए थे लेकिन 2014 में वह चौथी बार विधायक बने और मनोहर लाल खट्टर सरकार में सहकारिता राज्य मंत्री बने. हालांकि, 2019 में वह फिर से बीबी बत्रा से चुनाव हार गए लेकिन मनीष ग्रोवर (Manish Grover) ने हिम्मत नहीं हारी. वह अपने विधानसभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहते हैं और उन पर अपने घर से सरकार चलाने का आरोप है और मुख्यमंत्री ने उन्हें खुली छूट दे रखी है.
ग्रोवर का कहना है कि उन्होंने बचपन से संघर्ष देखा भी है और लड़ा भी है, इसलिए उन्हें जीत या हार से डर नहीं लगता. राजनीति में आने की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि बंटवारे के समय से ही कांग्रेस पार्टी ने देश को दो हिस्सों में बांट दिया है. उन्होंने विभाजन का काम किया, जिसके कारण वे कांग्रेस पार्टी से नफरत करते हैं क्योंकि इस पार्टी के कारण लाखों लोग बेघर हो गए और कई लोगों की जान चली गई. बंटवारे के वक्त उनके माता- पिता भी 3 साल तक अलग रहे. पिता जालंधर शरणार्थी शिविर में और माँ अम्बाला शरणार्थी शिविर में रहीं. इन दोनों को यह भी नहीं पता था कि एक- दूसरे जीवित भी हैं या नहीं.
होश संभालते ही आरएसएस से जुड़े
मनीष ग्रोवर ने बताया कि जब उन्हें होश आया तो वह शुरू से ही RSS से जुड़ गए थे और नियमित रूप से संघ की शाखा में जाते थे. स्कूल के समय में परिवार की स्थिति इतनी दयनीय थी कि वह स्कूल जाते समय रास्ते में लकड़ियाँ काटने का काम करते थे और बदले में उन्हें कुछ लकड़ी और बुरादा मिल जाता था, जिससे उनके परिवार का चूल्हा जलता था. ये है उनके परिवार की हकीकत थी. मगर अपने समय को उन्होंने बदल ही दिया.
सुबह से भी लोगों का लगा रहता है जमावड़ा
मनीष ग्रोवर (Manish Grover) के घर पर सुबह से ही लोगों का आना शुरू हो जाता है और देर रात तक उनसे काम कराने वालों की लंबी लाइन लगी रहती है. इस पर ग्रोवर का कहना है कि वह जनता के काम करने के लिए ही राजनीति में हैं और अगर उनके फोन से किसी का काम हो जाता है तो इसमें गलत क्या है. मुझे हार का कोई गम नहीं है, इस बार मैं रिजेक्ट हो गया हूं तो हो सकता है कि भविष्य में लोग मुझे फिर से जितवा दें. वे संगठन के कार्यकर्ता हैं और संगठन ने उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी है, उसे वे बखूबी निभाएंगे.
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