नई दिल्ली | भारत में रिजर्वेशन का मुद्दा नया नहीं वरन वर्षों से चली आ रही प्रक्रिया है. वैसे तो भारत मे आजादी से पहले ही नौकरियों और शिक्षा में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देना शुरू कर दिया था. दरअसल, आजादी प्राप्त होने से पहले प्रेसिडेंसी एरिया व रियासतों के बड़े हिस्से में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की शुरुआत हुई थी. सुप्रीम कोर्ट आरक्षण का लाभ निचले तबके तक कैसे पहुंचे, इस बारे में बैंच बैठाकर निर्णय ले रही है.
चूंकि अब सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल यह है कि क्या एससी व एसटी वर्ग के भीतर राज्य सरकार उप श्रेणी बना सकती है जैसे ओबीसी में क्रीमी लेयर इत्यादि. 2004 के फैसले में निर्णय दिया गया था कि राज्य को उपश्रेणी बनाने का अधिकार नहीं है. परन्तु अब कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि कई जातियां अभी भी वहीं हैं जहां आरक्षण से पहले थी, क्योंकि उन्हें आरक्षण का वास्तविक लाभ मिला ही नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार एससी-एसटी के पिछड़े वर्ग को दे प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्य सरकार को आरक्षण देते समय आरक्षित वर्ग के भी अति पिछड़े लोगों को प्राथमिकता देनी चाहिए जिससे आरक्षण का लाभ उन्हें मिल सके. वो समाज में अपनी पहचान बना सकें, तभी रिजर्वेशन अपने वास्तविक उद्देश्यों को हासिल कर पायेगा. क्योंकि अभी इसमें बहुत अधिक विषमताएं हैं जिससे कुछ लोग अभी भी वहीं हैं जहां 70 साल पहले खड़े थे.
अति पिछड़े तबके को नही मिलता लाभ
जजों की बैंच ने निर्णय लिया कि राज्य सरकार इन अति पिछड़े वर्गों को आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं कर सकती. अतः अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि राज्य सरकार अगर उप श्रेणी बनाती है तो वह संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ नहीं होगा, क्योंकि जब राज्य सरकार को रिजर्वेशन देने का अधिकार है तो उसे उपवर्ग बनाने का अधिकार कैसे नहीं हो सकता है? अतः 2004 में दिये गए फैसले पर दोबारा विचार करने की जरूरत है जिसमें राज्य सरकार को उपश्रेणियां बनाने के अधिकार से वंचित किया गया था. अतः अब यह मामला चीफ जस्टिस को भेजा गया है जिस पर वह अंतिम निर्णय लेंगे तथा 7 या उससे अधिक जजों की बैंच बैठाकर फिर से इस पर विचार करेंगे.
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