पराली जलाने वाले किसानों की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, सुप्रीम कोर्ट ने दिया MSP के दायरे से बाहर रखने का सुझाव

नई दिल्ली | राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में दमघोंटू हो चुकी जहरीली हवा के लिए जिम्मेदार पराली जलानें की घटनाएं नहीं रूकने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए पंजाब, हरियाणा समेत अन्य राज्यों में पराली जलानें वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लाभ से वंचित रखने का सुझाव दिया. दिल्ली- एनसीआर में वायु प्रदूषण कम करने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ ने यह टिप्पणी की है.

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जस्टिस कौल ने कहा कि मेरे विचार से पराली जलाने वाले किसानों से फसल एमएसपी के तहत कोई भी खरीदारी क्यों की जानी चाहिए. भले ही इसका लोगों, बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि जिन लोगों की पहचान पराली जलाने वालों के रूप में हुई है, उन्हें MSP पर अपनी फसल बेचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

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उन्होंने कहा कि इस दिशा में कुछ कठोर कदम उठाने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि यह टिप्पणी किसी एक राज्य या दूसरे राज्य या केंद्र के बारे में नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्य को अपनी राजनीति व लेख किनारे करके इस समस्या के समाधान के लिए एकसाथ मिलकर काम करना होगा तभी इस समस्या का समाधान निकालने में मदद मिल सकती है.

खलनायक के रूप में किसानों को किया जा रहा है पेश

जस्टिस धूलिया ने पराली जलाने वाले किसानों को धान की फसल उगाने पर रोक लगाने का भी सुझाव दिया है. उन्होंने कहा कि यह एक सुझाव है क्योंकि MSP नीति खत्म नहीं की जा सकती. यह एक संवेदनशील मुद्दा है और ऐसा लगता है कि इस मुद्दे को लेकर किसानों को खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि किसान मजबूरी में पराली जला रहा है और ऐसे कुछ कारण है जिनपर हमें विचार करने की आवश्यकता है.

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वैकल्पिक फसलों की करनी होगी खेती

सुप्रीम कोर्ट ने भूजल स्तर गिरने पर चिंता जताते हुए कहा है कि इस हिसाब से वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब धरती के आंचल में पानी की बूंद नहीं बचेगी. किसानों को भी धान उगाने के परिणामों को समझना होगा या उन्हें समझाया जाना चाहिए. यह कैसे होगा, हमें नहीं पता और इसका क्या गणित है क्योंकि हम कृषि विशेषज्ञ तो है नहीं. किसानों को धान की बजाय दूसरी फसलों की खेती की ओर बढ़ना होगा.

शीर्ष अदालत ने कहा कि धान उगता रहेगा और जमीन सूखती रहेगी. धीरे-धीरे वहां पानी नहीं बचेगा क्योंकि MSP का पहलू जटिल है और सरकार लोगों के कुछ समूह को नाराज़ नहीं करना चाहती. यदि ऐसे ही राज्यों के बीच इस मुद्दे को लेकर आरोप- प्रत्यारोप का दौर चलता रहा तो इसके बेहद घातक परिणाम सामने होंगे.

हरियाणा से प्रेरणा ले पंजाब

पीठ ने छोटे किसानों को पूरी तरह से मुफ्त में मशीनरी देने, उनसे पराली की गांठें लेने और फिर उन्हें बेचने का सुझाव दिया. साथ ही कहा कि यदि बड़े किसान ऐसा कर सकते हैं, तो मुझे यकीन है कि राज्य सरकार भी कर सकती है. पराली का उपयोग करके और उत्पाद बेचकर आप मशीनों में किया भुगतान वसूल सकते हैं.

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पंजाब सरकार के महाधिवक्ता ने कहा कि धान की पुआल के लिए रिटर्न, जो नीतिगत रूप से ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता हैं वह न्यूनतम है, ऐसे में केंद्रीय सब्सिडी की आवश्यकता होगी. इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि मुझे इस बार में कुछ जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा कि छोटे किसानों के सामने एकमात्र समस्या मशीनरी और वित्तीय सहायता देने में असमर्थता है. इस पर कोर्ट ने पंजाब को हरियाणा सरकार द्वारा निर्धारित तरीके से वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाने के प्रयासों से प्रेरणा लेने को कहा.

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