रोहतक | हरियाणा के जिला रोहतक स्थित कलानौर के माडौदी गांव में इन दिनों मिट्टी वरदान बन गई है. खंड के बल्लम गांव के 10वीं पास किसान चौधरी कपूर सिंह अहलावत के बेटे जयबीर सिंह ने 31 साल तक सेना में सेवा की. वर्ष 2019 में सेवानिवृत्त होने के बाद जमीन से जुड़े रहने के लिए उन्होंने मड़ौदी गांव में 22 एकड़ जमीन पट्टे पर ली और उस पर बाग लगाया.
इसमें सबसे पहले अंगूर और अमरूद की खेती की गई. उसी बगीचे में पपीते के पौधे लगाए गए. जब पपीते से बचत होने लगी तो मैंने लगभग 7 एकड़ में अलग से पपीते की खेती शुरू कर दी. 2 एकड़ की पपीते की फसल दिसंबर में बाजार में जाने के लिए तैयार हो जाती है, जबकि 4 एकड़ की पपीते की फसल अप्रैल तक तैयार हो जाएगी.
इस तरह कमाए मुनाफा
पपीते के एक पेड़ से 10 से 15 दाने निकलते हैं, जिससे कम पूंजी में अच्छी फसल मिलती है. जयबीर ने बताया कि इसकी खेती करना आसान है. इसमें लागत कम और मुनाफा अच्छा होता है. पपीते की खेती करते हुए हमने एक साल में लाखों रुपये से ज्यादा का मुनाफा कमाया है. पपीते के पेड़ पर लगभग 40 से 50 किलोग्राम फल लगते हैं और बाजार में इसकी कीमत आमतौर पर 20 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम होती है.
पपीते के पौधे भी हैं रोगग्रस्त
कम किसान पारंपरिक खेती छोड़कर बागवानी की ओर रुख कर रहे हैं. सरकारी योजनाओं से लाभान्वित किसान समृद्ध हो रहे हैं. समय- समय पर गांवों में सेमिनार के माध्यम से भी जागरूक किया जा रहा है. पपीते की खेती के लिए फरवरी, मार्च, जुलाई और अगस्त का समय सबसे अच्छा माना जाता है.
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पपीता बेचने की नहीं कोई चिंता
किसान को पपीता बेचने की चिंता नहीं है. ज्यादातर पपीते के व्यापारी खेतों में आकर इसे खरीद लेते हैं. वे कुछ पपीता स्थानीय बाजार में ले जाते हैं और बेचते हैं. बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है.
एक एकड़ में 5 लाख रुपये तक की सालाना आय
जयबीर सिंह ने बताया कि यदि एक एकड़ को बाजार में अच्छी कीमत मिलती है तो सालाना लगभग 5 लाख रुपये की आय होती है, जिसमें से लगभग 80 हजार रुपये लागत होती है. इसके अलावा, एक एकड़ पर 43 हजार रुपये सब्सिडी भी मिलती है. जयबीर ने बताया कि समय- समय पर बागवानी विभाग से डॉक्टरों की टीम पेड़ों की जांच करने आती है. यह बीमारियों की रोकथाम के बारे में भी जागरूकता पैदा करता है.
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