चंडीगढ़ | हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के ज्यादातर नेता जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ मिलकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावी तैयारियों के सिलसिले में 2 दिन पहले भाजपा की ओर से पंचकुला में बुलाई गई कोर कमेटी की बैठक में यह मुद्दा प्रमुखता से उठा था. बैठक में मौजूद हरियाणा के ज्यादातर नेता बिना किसी सहयोगी दल के चुनाव लड़ने के पक्ष में थे.
चुनाव बाद गठबंधन के लिए और विकल्प
बीजेपी नेताओं का तर्क है कि अगर 2019 की तरह अकेले चुनाव लड़ने पर पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है और जेजेपी या INLD के कुछ विधायक जीतकर आते हैं, तो पार्टी के पास गठबंधन बनाने का विकल्प है. उनके साथ गठबंधन करने का विकल्प खुला रहेगा. ऐसे में पार्टी को चुनाव पूर्व गठबंधन बनाकर चुनाव में उतरने के बजाय चुनाव के बाद गठबंधन का विकल्प तलाशना चाहिए. हरियाणा में BJP पहले से ही ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा रही है. हालांकि, उस वक्त बीजेपी छोटे भाई और इनेलो बड़े भाई की भूमिका में थी.
3 जगह बंटेंगे जाट वोट
जाट वोट 2 नहीं बल्कि 3 जगह बंटेंगे. बीजेपी हरियाणा में गैर- जाट की राजनीति करती है. राज्य की जनसंख्या में जाटों की संख्या लगभग 25% है. मौजूदा स्थिति में जाट मतदाता भूपेन्द्र सिंह हुडा के नेतृत्व वाली कांग्रेस और पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) के बीच बंटे हुए नजर आ रहे हैं. बीजेपी के साथ सरकार में शामिल जेजेपी की राजनीति भी जाटों के इर्द- गिर्द घूमती है. 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के बाद 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न पर नजर डालें तो जाटों ने बीजेपी के खिलाफ एकतरफा वोट किया था.
बहुकोणीय लड़ाई में जीत की संभावना अधिक
बहुकोणीय लड़ाई में जीत की संभावना अधिक होती है. हरियाणा बीजेपी इकाई के ज्यादातर पदाधिकारियों की राय है कि पार्टी को किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन और सीटें साझा करने के बजाय सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने चाहिए. अगर बीजेपी किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं करती है तो उसके अलावा कांग्रेस, इनेलो, आम आदमी पार्टी और जेजेपी के उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में आमने- सामने होंगे. एक- आध सीटों पर मजबूत निर्दलीय चेहरा भी दिख सकता है. ऐसे बहुकोणीय मुकाबले वाले चुनाव में बीजेपी उम्मीदवारों की राह आसान हो सकती है क्योंकि गैर-जाट राजनीति के कारण पार्टी के पास समाज के बाकी 35 समुदायों के बीच अच्छा वोट बैंक है.
हालांकि, बीरेंद्र सिंह के इस विरोध की मुख्य वजह जींद जिले की उचाना सीट भी है. यह बीरेंद्र सिंह की पारंपरिक सीट है लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में यहाँ उनकी पत्नी प्रेमलता, जेजेपी के दुष्यंत चौटाला से हार गईं थी. हरियाणा के बांगर इलाके (जींद और आसपास के इलाके) जहां बीरेंद्र सिंह राजनीति करते हैं, वहां भी जेजेपी की अच्छी पकड़ है.
2019 में बीजेपी सिमटी थी 40 पर
साल 2014 में बीजेपी ने सभी विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा और 47 सीटें जीतीं और हरियाणा में पहली बार अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 10 सीटें जीतने के बाद बीजेपी का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर पहुंच गया. 2019 के लोकसभा चुनाव के 5 महीने बाद हुए राज्य विधानसभा चुनाव में उसने ’75 पार’ का नारा दिया, लेकिन पार्टी बहुमत के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई और 40 सीटों पर सिमट गई. तब एक साल पहले बनी जेजेपी ने 10 विधानसभा सीटें जीती थीं.
दिल्ली में होगा अंतिम फैसला
हालांकि, हरियाणा बीजेपी की कोर कमेटी की बैठक में इस मुद्दे पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ. बैठक लेने आए केंद्रीय नेताओं ने सभी की राय सुनी और अब इसकी जानकारी पार्टी आलाकमान को दी जाएगी. अंतिम निर्णय दिल्ली स्तर पर ही लिया जाएगा.
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