नई दिल्ली | केंद्र सरकार की तरफ से देश में न्यूनतम वेतन यानी मिनिमम वेज की व्यवस्था खत्म करने की तैयारी की जा रही है. इसके स्थान पर अगले वर्ष से देश में जीवनयापन वेतन यानी लिविंग वेज की व्यवस्था लागू करने की योजना बनाई जा रही है. सूत्रों की माने तों सरकार ने इस व्यवस्था की रूपरेखा बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) से तकनीकी सहायता की मांग की है. लिविंग वेज वह न्यूनतम आय होती है जिससे कोई मजदूर अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकता है. इसमें आवास, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कपड़ें सम्मिलित हैं.
1 साल में जा सकते हैं न्यूनतम वेतन से आगे
आईएलओ ने इसी महीने की शुरुआत में इसे मंजूरी प्रदान कर दी थीं. सरकार का दावा है कि यह बुनियादी न्यूनतम वेतन से ज्यादा होगा. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने ईटी को जानकारी दी कि हम एक साल में न्यूनतम वेतन से आगे जा सकते हैं. आईएलओ के गवर्निंग बॉडी की 14 मार्च को जिनेवा में संपन्न हुई 350वीं बैठक में न्यूनतम वेतन से जुड़े सुधारों को मंजूरी मिली. भारत आईएलओ का संस्थापक सदस्य है और 1922 से इसके गवर्निंग बॉडी का स्थायी सदस्य है.
लाखों लोगों को होगा फायदा
अधिकारियों का कहना है कि सरकार 2030 तक सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDG) को हासिल करने की दिशा में काम कर रही है. एक धारणा यह है कि न्यूनतम वेतन को जीवनयापन वेतन से बदलने से लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के भारत के प्रयासों को स्पीड मिलेगी. अधिकारी ने कहा, ‘हमने लिविंग वेज के कार्यान्वयन से होने वाले सकारात्मक आर्थिक परिणामों के लिए क्षमता निर्माण, डेटा के व्यवस्थित संग्रह और साक्ष्य के लिए आईएलओ से मदद मांगी है.’
2017 से राष्ट्रीय स्तर पर नहीं किया गया संशोधन
भारत में 50 करोड़ वर्कर हैं और उनमें से 90% असंगठित क्षेत्र में हैं. उन्हें रोजाना कम से कम 176 रुपये या उससे ज्यादा मजदूरी मिलती है. यह इस बात पर निर्भर करती है कि आप किस राज्य में काम कर रहे हैं. हालांकि, 2017 से राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम वेतन को संशोधित नहीं किया गया है. यह राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं है और इसलिए कुछ राज्यों में इससे भी कम मजदूरी मिल रही है. साल 2019 में पारित वेतन संहिता को अभी लागू किया जाना शेष है. इसमें एक वेज फ्लोर का प्रस्ताव है जो सभी राज्यों पर बाध्यकारी रहेगा.
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