हरियाणा के पूर्व CM भुपेंद्र हुड्डा को बड़ा झटका, गुरुग्राम लैंड घोटाले की जांच को लेकर हाईकोर्ट ने दिया ये आदेश

चंडीगढ़ | लोकसभा चुनावों की गहमा- गहमी के बीच हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के लिए ज्यादा अच्छी खबर सामने नहीं आई है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा व हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा से जुड़े गुरुग्राम में विवादास्पद जमीन की जांच मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार द्वारा गठित जस्टिस एसएन ढींगरा आयोग को जांच जारी रखने का फैसला कर सकती हैं.

Bhupender Singh Hooda

बता दें कि गुरुग्राम के सेक्टर- 83 में जमीन के व्यावसायिक उपयोग का लाइसेंस जारी करने में धांधली की जांच के लिए तत्कालीन मनोहर लाल सरकार द्वारा मई 2015 में जस्टिस ढींगरा की अगुवाई में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था. राबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हास्पिटेलिटी का नाम भी जमीन लेने वालों में शामिल होने के कारण इस जांच को बढ़ा दिया गया था.

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रिपोर्ट सार्वजनिक करने पर लगी थी रोक

जस्टिस एसएन ढींगरा ने अपनी 182 पेज की रिपोर्ट 31 अगस्त 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल को सौंपी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी थी. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्‌डा ने जस्टिस एसएन ढींगरा आयोग की जांच को चुनौती दी थी. जनवरी 2019 में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने माना था कि विवादास्पद भूमि सौदों की जांच करने वाले जस्टिस एसएन ढींगरा आयोग की रिपोर्ट “नान-एस्ट” (अस्तित्व में नहीं) है.

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हालांकि, इस मुद्दे पर खंडपीठ के दोनों जजों के अलग-अलग विचार होने से विचार के लिए तीसरे जज को भेजा था. अपना मत देते हुए हाईकोर्ट के जज अनिल खेत्रपाल ने स्पष्ट किया कि एसएन ढींगरा आयोग के लिए यह खुला होगा कि वह उस चरण से कार्यवाही जारी रखें, जब जांच आयोग अधिनियम 1952 की धारा 8B (जिन व्यक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है, उनकी सुनवाई की जाएगी) के तहत नोटिस जारी किया जाना आवश्यक था.

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सरकार फिर से जांच के लिए कह सकती

हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ने 2 सितंबर 2016 की अधिसूचना के माध्यम से जांच करने के लिए आयोग का कार्यकाल समाप्त कर दिया था. इसे 1952 अधिनियम की धारा- 7 के तहत, जारी अधिसूचना नहीं माना जाएगा. जब आयोग का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ है, तो इसे अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपयुक्त सरकार द्वारा पुनर्जीवित किया जा सकता है और सरकार आयोग को फिर से जांच जारी रखने का आदेश दे सकती है.

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