हिसार | आदमपुर से लगभग 9 किलोमीटर दूर भादरा रोड पर बसे मोहब्बत पुर गांव का इतिहास बहुत ही पुराना और रोचक है. इस गांव के इतिहास से सन 1857 के आंदोलन में यहां के लोगों के योगदान की भी जानकारी मिलती है. पहले इस गांव में एक बहुत बड़ा टीला हुआ करता था. एक बार जब यहां पर खुदाई की गई थी तो यहां से कच्ची ईंट, ढक्कन, मिट्टी के मटके और कुछ अन्य सामान मिले थे, जिससे यहां की पुरानी सभ्यता के होने के संकेत मिलते हैं.
इसके पश्चात, इसकी खुदाई के काम को बंद कर दिया गया था और इस गांव के लोगों ने कई सालों तक इसकी सुरक्षा की. परंतु बाद में इसकी ओर ध्यान न दिए जाने के कारण इसका वजूद मिटता चला गया और काफी समय बीत जाने के बाद, यहां पर लोगों ने बस्तियां बना ली. गांव के लोगों ने जानकारी देते हुए कहा कि अंग्रेजों के शासन के वक्त यह गांव जेम्स रोनाल्डो स्पिनर नामक एक अंग्रेज अधिकारी के अधीन था. यह गांव काफी गांवों का केंद्र होता था. यहां पर उस वक्त पक्के मकान बनाने की अनुमति नहीं थी.
1857 की लड़ाई में जब भारतीयों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया तो एक अंग्रेज अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए हिसार से अपने परिवार के साथ भाग आया और छुपते छुपाते इस गांव में पहुंच गया. गांव वालों ने इसकी बग्गी को तोड़ दिया और उस अंग्रेज अधिकारी को भूखा प्यासा वहीं से भगा दिया. इसके बाद यह अंग्रेज परिवार राजस्थान के गांव रामगढ़िया में पहुंच गया. वहां के लोगों ने उस अंग्रेज परिवार का सम्मान किया और उन्हें खाना खिलाया व शरण दी. बाद में भारतीयों द्वारा शुरू किए गए ग़दर को अंग्रेजों ने दबा दिया तो उसी अंग्रेज अधिकारी ने मोहब्बत पुर गांव में रोलर चलाने के आदेश दे दिए.
लेकिन रामगढ़िया के लोगों ने उस अंग्रेज अफसर से यह आदेश वापस लेने की याचना की तो उन्होंने अपने आदेश को वापस ले लिया. गांव के लोगों के अनुसार रामगढ़िया के लोगों और अंग्रेज अफसर के बीच मोहब्बत के चलते ही बाद में इस गांव का नाम मोहब्बतपुर पड़ा. इसके अतिरिक्त गांव के लोगों ने कहा है कि यहां से एक बहुत पुरानी नहर चितांग जाती थी. कहा जाता है कि चेतन नाम का एक ब्राह्मण व्यक्ति जहां जहां से गया वहां वहां पानी आता गया.
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