सिल्वर मेडल की अपील खारिज होने पर विनेश फोगाट ने तोड़ी चुप्पी, 3 पन्नों के लेटर में लिखा बहुत-कुछ

नई दिल्ली | पेरिस ओलम्पिक खेलों में कुश्ती के 50 किलोग्राम भारवर्ग में फाइनल से पहले 100 ग्राम वजन ज्यादा होने के चलते अयोग्य करार दी गई. हरियाणा की पहलवान बेटी विनेश फोगाट (Vinesh Phogat) ने एक पत्र के जरिए अपना दर्द बयां किया है. हालांकि, संयुक्त रूप से सिल्वर मेडल दिए जाने को लेकर उन्होंने कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) में अपील दायर की थी, लेकिन यहां उनकी अपील को ठुकरा दिया गया. विनेश आज पेरिस से हिंदुस्तान लौट रही है और यहां उनका स्वागत एक चैंपियन की तरह करने की जबरदस्त तैयारियां चल रही है.

Vinesh Phogat

विनेश फोगाट ने सोशल मीडिया पर तीन पन्नों का लेटर साझा किया है और अपने कुश्ती करियर की यात्रा और संघर्ष के किस्से साझा किए हैं. विनेश ने पेरिस ओलंपिक में मेडल ना मिलने को लेकर भी प्रतिक्रिया इस लेटर में दी है.

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किस्मत ने नहीं दिया साथ

पेरिस ओलम्पिक में वजन ज्यादा होने से पदक जीतने से चूकी विनेश फोगाट ने अपने पत्र के सबसे आखिर में कहा, मैं बहुत कुछ कहना चाहती हूं और बहुत कुछ बताना चाहती हूं लेकिन इसके लिए शब्द कभी पर्याप्त नहीं होंगे. जब समय सही होगा तब मैं फिर से अपनी बात कहूंगी. 6 अगस्त की रात और 7 अगस्त की सुबह हमने हार नहीं मानी, हमारी कोशिश आखिर तक नहीं थमी, हमने हथियार नहीं डाले लेकिन घड़ी रुक गई और वक्त सही नहीं था. मेरी किस्मत भी खराब थी.

ये कमी कभी नहीं होगी पूरी

मैं अपनी टीम, देशवासियों और परिवार के लिए जिस लक्ष्य को हासिल करना चाहती थी वो अधूरा रह गया. ये कमी मुझे जीवनभर महसूस होगी, ये ऐसी कमी है जो कभी पूरी नहीं होगी और पहले जैसी नहीं होगी. संभवत: किसी और परिस्थितियों में खुद को 2032 तक खेलता पाऊं क्योंकि मेरे अंदर लड़ाई और कुश्ती हमेशा बनी रहेगी.

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मैं ये भविष्यवाणी नहीं कर सकती कि भविष्य ने मेरे लिए क्या छिपा रखा है और इस जीवन यात्रा में क्या मेरा इंतजार कर रहा है लेकिन इस बात को लेकर मैं सुनिश्चित हू्ं कि मैं हमेशा उन चीजों को लेकर लड़ती रहूंगी जो मुझे लगता है कि सही है और जिसपर मैं भरोसा करती हूं.

बहुत कुछ करना चाहती थी साबित

दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहलवानों के आंदोलन में शामिल होने पर विनेश फोगाट ने कहा कि मैं महिलाओं और राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा के लिए लड़ी और इसकी रक्षा के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी, लेकिन 28 मई 2023 को राष्टध्वज के साथ अपनी तस्वीरों को देखती हूं तो वो मुझे परेशान कर देती हैं.

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मेरी इच्छा थी कि इस ओलंपिक में भारत का झंडा लहराए मेरे पास राष्टध्वज की एक तस्वीर हो, जो वास्तव में इसके मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती हो और इसकी गरिमा को पुनर्स्थापित करे. मुझे लगा कि ऐसा करके ये सही तरीके से बता सकती हूं कि झंडा और कुश्ती पर क्या गुजरी. मैं भारतवासियों को यह दिखाने की उम्मीद कर रही थी.

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