चंडीगढ़ | हरियाणा विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर प्रदेश भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अलग- थलग पड़ गए हैं. ग्राउंड सर्वे के बाद RSS 70% नए चेहरों को टिकट देने के पक्ष में है. इसके लिए सभी 90 सीटों पर 2- 2 संभावित नामों की लिस्ट तैयार कर ली गई है.
वहीं, हरियाणा बीजेपी पुराने नेताओं को ही विधानसभा चुनाव लड़ाने पर अड़ी हुई है. इसके लिए 3- 3 दावेदारों की लिस्ट तैयार कर ली गई है. इस लिस्ट पर गुरुग्राम में प्रदेश चुनाव समिति की बैठक में मंथन किया जाएगा. उसके बाद, इस पैनल की लिस्ट बनाकर केन्द्रीय हाईकमान के पास भेजकर फाइनल लिस्ट जारी की जाएगी. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि टिकटों को फाइनल करने में अमित शाह का प्रमुख रोल रहेगा, जिन्हें हरियाणा जिताने का जिम्मा सौंपा गया है.
अगर RSS की चली तो…
- अगर RSS की चली तो ज्यादातर नए चेहरे विधानसभा चुनाव लड़ते हुए दिखेंगे. उनकी लिस्ट के हिसाब से 60 से ज्यादा नेताओं का टिकट कटना तय है, जिनमें विधायक से लेकर मंत्री तक पर खतरा मंडरा रहा है.
- RSS के इस फैसले से 10 साल की सत्ता विरोधी लहर में कमी आएगी. सेकेंड लाइन लीडरशिप तैयार होगी. इसके अलावा, RSS व पार्टी संगठन से जुड़े नेताओं को चुनावी सियासत में आने का मौका मिलेगा.
अगर BJP की चली तो…
बीजेपी उन्हीं पुराने नेताओं को चुनावी रण में उतारेगी. नए नेताओं को मौका मिलने की संभावना कम हो जाएगी. इसका फायदा यह होगा कि पब्लिक इन्हें जानती है और पिछले 10 साल से ये अपने क्षेत्र में काम कर रहे हैं. वहीं, नुकसान यह होगा कि एंटी इनकंबेंसी का खतरा बढ़ जाएगा. नए नेता मायूस होकर घर बैठ जाएंगे.
RSS को तरजीह देने की वजह
लोकसभा चुनावों में RSS की दूरी से हरियाणा में बीजेपी को 5 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. RSS ने दावा किया था कि वे साथ होते तो 8 सीटें जीत सकते थे. इनके नेताओं का दावा है कि हरियाणा में RSS के 4 लाख से ज्यादा मेंबर्स एक्टिव हैं. जो बूथ लेवल पर वोटर्स को प्रभावित करने की माइक्रो वर्किंग करता है.
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