नई दिल्ली | पितृ पक्ष सनातन धर्म में अपना विशेष महत्व रखता है. पर्यावरण की आवश्यकता के साथ यह जीवन और भावनाओं की जरूरत को भी दर्शाता है. इसमें जल की ही भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी कौवों की होती हैं. क्योंकि कल जब जल खत्म हो जाएगा तब तर्पण कैसे करेंगे और कौवे नहीं रहेंगे तो हम श्राद्ध किसे खिलाएंगे. यहां ये चिंता इसलिए है क्योंकि पिछले काफी सालों से गांव कस्बों से कौवे गायब होते जा रहे हैं.
खास तौर पर श्राद्ध पक्ष में मिलने वाले यह कौए दिन भर गांवों और शहरों में छतों पर मुंडेर पर आकर बैठते थे और आवाज भी करते थे, लेकिन अब ना तो आवाज ही सुनाई देती है ना ही कौवे दिखाई देते हैं.
ये है एक्सपर्ट्स की राय
इस विषय में एक्सपर्ट डॉक्टर मनीष जैन ने जानकारी दी वह चिंता पैदा करने वाली है. डॉ. जैन बताते हैं कि गांव और शहरों से हरियाली गायब होती जा रही है. पेड़ पौधों को काटा जा रहा है. कौवे जैसा पक्षी ऊंचे पेड़ों पर अपने घोंसले बनाता है. ऐसे में उनके प्राकृतिक आवास खत्म हो चुके हैं. इसके अलावा, मोबाइल टावर से निकलने वाली रेडिएशन प्रदूषण की वजह बन रही है. इससे कौवों की प्रजनन क्षमता में भी कमी आई है. शहरीकरण के चलते कीड़े- मकोड़ों का जमीन पर रहना मुश्किल हो चुका है. कौवा इन मृत कीड़े- मकौड़ों को खाकर अपना पेट भरता है.
सुरक्षित आवास पर रहते हैं कौवे
फसलों में होने वाले कीटनाशकों के चलते कौवों की आबादी पर बुरा प्रभाव पड़ा है. ऐसे में वह ऐसी जगह पर जाना पसंद करते हैं, जहां उन्हें भोजन और आवास मिल पाए और जहां उनका जीवन भी सुरक्षित रह सके. यही कारण है कि गांव, शहरों और कस्बों में कौवा की संख्या कम होती जा रही है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज पृथ्वी लोक पर अपने सदस्यों से मिलने के लिए आते हैं. इस दिन कौवे को लगाए जाने वाले भोग के माध्यम से पूर्वज हम तक पहुंचते हैं.
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