चंडीगढ़ | हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था… ये लाइने हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान हो रहे दल- बदल पर बिल्कुल सटीक नजर आ रही है. तमाम आरोपो- प्रत्यारोपों के बीच सभी पार्टियां राजनीतिक भंवर से अपनी नैया को पार लगाने की जुगत भिड़ाती नजर आ रही हैं. चुनाव प्रचार का पहिया थम चुका है. अब तक कई छोटे- बड़े नेता एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी का दामन थाम चुके हैं. एक्सपोर्ट- इंपोर्ट की इस प्रक्रिया के बीच धड़कने बीजेपी और कांग्रेस दोनों की बढ़ी हुई हैं.
पक्ष और विपक्ष की बढ़ी टेंशन
हालांकि, किसी नेता के पार्टी छोड़ने या किसी नेता के पार्टी से जुड़ने से क्या फर्क पड़ेगा, इसका पटाक्षेप तो जनता 8 अक्टूबर को मतगणना के दिन कर ही देगी, लेकिन उससे पहले पक्ष और विपक्ष दोनों की टेंशन बढ़ी हुई है. चुनाव अब दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुके हैं. सबसे ज्यादा समस्या भाजपा और कांग्रेस को उनके खुद के बागी नेता दे रहे हैं. इन सब के बीच चुनावी समीकरण गड़बड़ाए नजर आ रहे हैं. पार्टी आलाकमान के तमाम मान- मनोव्वल के बावजूद कई नेता घर वापसी को तैयार नहीं हुए, जिससे पार्टी के आधिकारिक तौर पर घोषित प्रत्याशियों की जीत की राहें मुश्किल हो गई.
यहाँ हो रहा कड़ा मुकाबला
बात करें अगर अंबाला कैंट की तो यहाँ चित्रा सरवारा कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने के चलते निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं. इससे यहाँ त्रिकोणीय मुकाबला बन चुका है. भाजपा की तरफ से अनिल विज को इन सब से फायदा मिल सकता है. पुंडरी से कांग्रेस के सतबीर भान निर्दलीय तौर पर चुनाव मैदान में नजर आ रहे हैं. कैथल के गुहला चीका से नरेश भी निर्दलीय के तौर पर कांग्रेस के देवेंद्र हंस को चुनौती देते नजर आ रहे हैं. वहीं, पानीपत सिटी और ग्रामीण सीटों पर भी कांग्रेस के बागी प्रत्याशी रोहिता रेवड़ी और विजय जैन मुकाबले को रोचक बना रहे हैं.
पार्टी उम्मीदवारों के लिए पैदा हुई समस्याएं
लाडवा में बीजेपी के संदीप गर्ग निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे मुकाबला और कड़ा हो गया है. देवेंद्र कादियान और असंध में जिले राम शर्मा भाजपा से रूठ कर चुनावी रण में नजर आ रहे हैं. चुनावी जानकारी ऐसा मान के चल रहे हैं कि दोनों ही पार्टियों के बागी उम्मीदवार अपने- अपने क्षेत्र में मजबूत जन आधार रखते हैं. उनकी लोकप्रियता पार्टी के घोषित उम्मीदवारों के रास्ते में अड़चन पैदा कर सकती है. हालांकि, यह देखना दिलचस्प रहेगा कि इन बागियों का प्रभाव चुनावों पर कितना रहता है, लेकिन इतना जरूर है कि इनकी वजह से दोनों ही पार्टियों का मुकाबला कड़ा हो चुका है.
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