हरियाणा विस चुनाव में कांग्रेस की हार की एक और बड़ी वजह आई सामने, पढ़ें ये खास रिपोर्ट

चंडीगढ़ | हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Election) में अप्रत्याशित हार का सामना करने वाली कांग्रेस पार्टी अब इसके पीछे की वजह जाननें में जुटी हुई है. जातिवादी राजनीति और नेताओं की आपसी गुटबाजी के अतिरिक्त अब कांग्रेस में टिकटों के गलत बंटवारे को लेकर भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

Indian National Congress INC

टिकटों का गलत बंटवारा

कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में ऐसे नेताओं को नजरंदाज किया जिन्हें सर्वे में जनता ने पहले नंबर पर रखा था, लेकिन वे टिकट आवंटित करने वाले नेताओं के निजी पैमाने पर खरा नहीं उतर पा रहे थे. कांग्रेस ने चुनाव से पहले जिताऊ उम्मीदवारों को ही चुनावी रण में उतारने का दावा किया था. इसके अलावा, लगातार दो चुनाव हार चुके नेताओं को टिकट नहीं देने की बात कही गई थी, लेकिन टिकट आवंटन में रणनीति बनाने वालों ने यह पैमाना ध्वस्त कर दिया.

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बागियों ने डूबोई नैया

कांग्रेस के रणनीतिकारों ने करीब 6 से 8 सीटों पर बागी कैंडिडेट्स को मनाना उचित ही नहीं समझा. उनकी सोच थी कि कांग्रेस पार्टी 55 से 65 सीटें जीत रही है. ऐसे में बागियों की वजह से दो या तीन सीटें हार भी गए तो सरकार बनाने की संभावनाओं पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा.

कांग्रेस के रणनीतिकारों की यही सोच उसके सरकार बनाने के इरादों पर भारी पड़ी है और पार्टी के अधिकतर ऐसे प्रत्याशी चुनाव हार गए, जिन्हें पैराशूट उम्मीदवार के रूप में चुनावी रण में उतारा गया था और वास्तविक जिताऊ उम्मीदवारों की दावेदारी को अनदेखा कर दिया गया था. कांग्रेस के बागियों को बैठाने की कोई कोशिश भी पार्टी के रणनीतिकारों ने नहीं की.

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जिताऊ उम्मीदवारों के टिकट काटे

कांग्रेस के आंतरिक सर्वे में तिगांव में पूर्व विधायक ललित नागर का टिकट काट दिया गया, जबकि वह जिताऊ स्थिति में थे. बल्लभगढ़ में पूर्व मुख्य संसदीय सचिव शारदा राठौर के स्थान पर कांग्रेस मुख्यालय की पसंद की उम्मीदवार को टिकट थमा दी गई. गोहाना में जगबीर मलिक, बरवाला में रामनिवास घोडेला और खरखौदा में जयबीर बाल्मीकि के प्रति लोगों में भारी आक्रोश था लेकिन फिर भी उन्हें टिकट दी गई. घरौंडा में तीन बार चुनाव हार चुके वीरेंद्र राठौड़ को टिकट दिया गया और वो चौथी बार भी हार गए.

कई नेताओं की बगावत पड़ी भारी

अंबाला कैंट से चित्रा सरवारा कांग्रेस की बागी उम्मीदवार थी, लेकिन उन्हें बिठाने का कोई प्रयास नहीं किया गया. इसके चलते न तो खुद चित्रा जीती और न ही पार्टी उम्मीदवार परी को जीत हासिल हो पाई. कांग्रेस हाईकमान के सिफारशी प्रदीप नरवाल को बवानीखेड़ा से टिकट दी गई थी, लेकिन वहां उनका कोई जनाधार और पहचान नहीं थी. पटौदी में भी ऐसी ही स्थिति सामने आई थी.

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बहादुरगढ़ से प्रत्याशी राजेन्द्र जून का विरोध था लेकिन फिर भी उन्हें टिकट दी गई. पानीपत ग्रामीण सीट पर सचिन कुंडू का जबरदस्त विरोध था लेकिन इसके बावजूद भी पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार घोषित कर दिया. तिगांव से बागी लड़े ललित नागर को मनाने के लिए भी कोई नेता उनके पास नहीं पहुंचा. यही स्थिति शारदा राठौर के मामले में रही.

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