हिसार । कहते हैं कि भारत की आत्मा गांवों में बसी है, क्योंकि आज भी तकरीबन 65-70 फीसदी आबादी गांवों में ही रहती है. अगर खेती को देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार कहा जाए तो पशुपालन का भी इसमें अहम योगदान है. पहले लोग अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए ही पशुपालन किया करते थे. लेकिन आज के दौर में लोगों की जरूरतें बदल गई हैं और वे व्यवसाय के लिहाज से पशुपालन करने लगे हैं. क्योंकि किसी भी बिजनेस को चलाने के लिए लाभ और हानि दो बड़े फैक्टर होते हैं, इसलिए हर कारोबारी इन दोनों फैक्टरों पर बहुत ध्यान रखता है. ऐसे में पशुपालकों को भी यह देखना जरूरी है कि उन्हें अपने व्यवसाय में किस तरह ज्यादा से ज्यादा लाभ होगा.
पशुपालन से ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त करना पशु की नस्ल, जाति तथा उसकी मूल क्षमता पर निर्भर करता है. हरियाणा सरकार द्वारा इस व्यवसाय को फायदेमंद बनाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. प्रदेश में पशु नस्ल सुधार के उद्देश्य से कृत्रिम गर्भाधान तकनीक बड़े पैमाने पर अपनाई जा रही है, जिसका असर प्रदेश के दूध उत्पादन में देखा जा सकता है. प्रदेश में श्वेत क्रांति के चलते पिछले दो दशक में दूध उत्पादन में ढाई गुना बढ़ोतरी हुई है. प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता, जो वर्ष 2016-17 में 930 ग्राम प्रति व्यक्ति थी, आज बढक़र 1344 ग्राम प्रति व्यक्ति हो गई है. इसके पीछे कहीं न कहीं हरियाणा सरकार की नस्ल सुधार योजना का बड़ा योगदान है.
करनाल में कार्यरत वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. तरसेम राणा का कहना है कि इस वर्ष प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता व आय के मामले में हरियाणा ने पंजाब को पछाड़ते हुए देश में पहला स्थान हासिल कर लिया है. यह कृत्रिम गर्भाधान तकनीक से ही सम्भव हो पाया है. कृत्रिम गर्भाधान की स्कीम गाय व भैसों में नस्ल सुधार और दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए चलाई गई है. इस स्कीम के अन्तर्गत उत्तम नस्ल के सांडों का वीर्य लेकर गाय व भैंसों को कृत्रिम विधि से गर्भित किया जाता है, जिससे नस्ल सुधार के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है. कृत्रिम गर्भाधान तकनीक में सबसे अच्छी नस्ल के सांडों के वीर्य को ही इस्तेमाल किया जाता है जिससे पशुओं में दूध उत्पादन पहले से कई गुना बेहतर हो जाता है.
डॉ. राणा का कहना है कि पशु गर्भाधान की सेक्स सोर्टेड गर्भाधान पद्धति भी अब प्रदेश में उपलब्ध है जिससे 100 प्रतिशत बछडिय़ां ही पैदा होती है. इस नई तकनीक के जरिए देसी गाय सिर्फ बछिया को जन्म देती है. प्रदेश में इसका सफल प्रयोग जारी है. इससे आने वाले समय में अच्छी नस्ल की बछडिय़ों से दूध का उत्पादन बढ़ेगा, जिससे पशुपालक की आय में वृद्धि होगी. डॉ. राणा के अनुसार कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा गांवों में स्थित डिस्पेंसरी और घर पर जाकर भी दी जा रही है. पशुपालक भी इस तकनीक में काफी रुचि ले रहे हैं. यही कारण है कि गायों में लगभग 100 प्रतिशत और भैंसों में 50 से 60 प्रतिशत कृत्रिम गर्भाधान तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. वे कहते हैं कि इन आंकड़े को शत-प्रतिशत करने का लक्ष्य है. उनका मानना है कि किसान ज्यादा से ज्यादा इस तकनीक का लाभ उठाकर अपनी आय को और भी ज्यादा बढ़ा सकता है.
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