चंडीगढ़। इंडियन नेशनल लोकदल इनेलो के सुप्रीमो, पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला की 10 साल की सजा पूरी होने के बाद जेल से रिहाई को लेकर इनेलो का प्रसन्न होना स्वभाविक है. क्योंकि ऐसी संभावना है कि पॉलिटिकल पिच पर बुजुर्गोवार की पुनः वापसी से इनेलो का खोया हुआ जनाधार वापस लौट आएगा.
हरियाणा में पिछले 4 दशकों से हो रही है जाट व गैर जाट की राजनीतिक
बता दे कि यह बात भाजपा भी जानती है और मानती है, लेकिन दिलचस्प यह है कि भाजपा भी चाहती है कि इनेलो मजबूत हो और बुजुर्ग चौटाला उसका पूरा जनाधार वापस लाने में कामयाब हो. क्योंकि इससे सर्वाधिक लाभ भाजपा का ही होगा. भाजपा की इस सोच की वजह भी सब जानते हैं. हरियाणा में चार दशक से जाट गैर जाट की राजनीति होती रही है. गैर जाट चेहरा भजनलाल होते थे, समय काल और परिस्थितियों के अनुसार जाट चेहरा देवी लाल,बंसी लाल, ओमप्रकाश चौटाला और भूपेंद्र सिंह हुड्डा रहे. इन्हीं में देवीलाल और उनके पुत्र ओमप्रकाश चौटाला गैर कांग्रेसी चेहरा रहे तो बंसीलाल और भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस का चेहरा रहे.
ओम प्रकाश चौटाला की रिहाई से भाजपा को होगा फायदा
इस समय जाट राजनीति 3 चेहरों भूपेंद्र सिंह हुड्डा, चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के पुत्र अभय चौटाला और पोत्र दुष्यंत चौटाला के इर्द-गिर्द घूम रही है. वहीं दूसरी ओर गैर जाट राजनीति के चेहरों की बात करें तो फिलहाल केवल और केवल मनोहर लाल है. इसलिए भाजपा मानती है कि जितने अधिक कद्दावर जाट नेता एक दूसरे के विरुद्ध मैदान में उतरेंगे उतना ही उसका फायदे में रहना स्वाभाविक है. ओम प्रकाश चौटाला की रिहाई के साथ ही कांग्रेस और इनेलो में युद्ध शुरू हो गया है. इनेलो के नेताओं द्वारा भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर आरोप लगाए जा रहे हैं. बता दें कि पिछले चुनाव में जाट मतदाता भूपेंद्र सिंह हुड्डा यानी कांग्रेस और दुष्यंत चौटाला की नवगठित जननायक जनता पार्टी के बीच बट गए थे.
इनेलो से अलग होने पर जजपा को हुआ नुकसान
इनेलो को इससे काफी नुकसान हुआ और उसके नेता अभय चौटाला ही केवल विधानसभा पहुंच सके. क्योंकि जजपा इनेलो का ही बच्चा थी, इसलिए इनेलो का अधिकांश वोट बैंक उसके साथ चला गया. 2014 में इनेलो ने अभय चौटाला के नेतृत्व में चुनाव लड़ कर 24 फ़ीसदी से अधिक वोट हासिल किए थे. और तकरीबन 19 सीटें जीती थी. तब कांग्रेस ने 20 फ़ीसदी से अधिक मत प्राप्त करके 15 सीटें हासिल की थी. भाजपा को 33 फीसद से अधिक मत मिले थे, वह 47 सीटें लेकर मोदी के सहारे सत्ता में आ गई थी. हालांकि कुछ क्षेत्रों में जाट मतदाताओं ने भाजपा को भी वोट दिया है. फरवरी 2016 में हुए जाट आंदोलन के कारण जाट और गैर जाट की खाई और भी चौड़ी हो गई. 2019 में भाजपा को गैर जाटों का सपोर्ट मिला और वह पिछले चुनाव की अपेक्षा सवाद 3 फीसद की बढ़ोतरी के साथ 36% वोट प्राप्त कर पाई. यह बात लग रही कि उनकी 7 सीटें घट गई.
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