सलाम है ऐसी सोच को, चार लाख रुपए खर्च कर खोली बच्चों के लिए फ्री लाइब्रेरी

जींद । गुरुसर गांव नरवाना शहर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. लिंक मार्ग होने की वजह से साधनों के अभाव में विधार्थियों को शहर जाकर पढ़ने के लिए काफी दिक्कतें उठानी पड़ती थी. गांव के ही रिटायर लैब एसिस्टेंट गुरनाम सिंह से बच्चों की यह परेशानी देखी नहीं गई और उन्होंने गांव में ही लाइब्रेरी खोलने का निर्णय किया. उनकी सोच थी कि गांव के विधार्थियों खासकर लड़कियों को शहर में जाने की जरूरत ना पड़े और उन्हें गांव में ही लाइब्रेरी की सुविधा उपलब्ध कराई जाएं.

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लाइब्रेरी का निर्माण कार्य पूरा होने से पहले ही इसी वर्ष 30 अप्रैल को गुरनाम सिंह दुनिया से चल बसे. लेकिन उनके बेटे गुरदीप सिंह ने अपने पिता के सपने को साकार करने की ठानते हुए लाखों रुपए खर्च कर गांव में लाइब्रेरी की स्थापना करवा दीं, जो अगले सप्ताह से शुरू हो जाएगी. इस लाइब्रेरी में गांव के विधार्थी बगैर फीस दिए सरकारी नौकरी के लिए टेस्टों की तैयारी कर सकेंगे.
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में बहुत कम लोग ही ऐसे हैं जिन्हें अपने अलावा दूसरों की फ़िक्र होती है. लेकिन गुरदीप सिंह ने इन सब बातों के विपरित गांव में लाइब्रेरी का निर्माण करवाया. लाइब्रेरी में एक समय में 25 बच्चे बैठ कर पढ़ाई कर सकते हैं. लाइब्रेरी में नौकरी की तैयारियों से संबंधित पाठ्य सामग्री के अलावा स्नातक संबंधी किताबें भी उपलब्ध रहेगी. अब तक गांव के बच्चों को लाइब्रेरी में बैठने के लिए नरवाना और उझाना जाना पड़ता था जहां उन्हें 800-1500 रुपए प्रति महीना फीस भी देनी पड़ती थी. अब गांव में लाइब्रेरी की सुविधा फ्री में मिलेगी.

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शनिवार और रविवार को लगाई जाएगी क्लासेज

जींद महिला कॉलेज में एसिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत गुरदीप सिंह ने बताया कि लाइब्रेरी में सीसीटीवी कैमरों से लेकर इन्वर्टर तक की सुविधा की गई है. यहां पढ़ने के लिए आने वाले विद्यार्थियों की किसी भी प्रकार की शंका को दूर करने के लिए हर शनिवार और रविवार को क्लासेज भी लगाईं जाएंगी. गुरदीप ने बताया कि पिताजी के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने गांव में पड़ी अपनी जमीन पर लाइब्रेरी का निर्माण करवाया. इस पर करीब चार लाख रुपए खर्च हुए हैं.

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पद छोटा लेकिन सोच बड़ी

गुरदीपसिंह के पिता गुरनाम सिंह केवल 10 वीं तक पढ़े लिखे हुए थे. वें नरवाना के केएम कॉलेज में चौकीदार के पद पर कार्यरत थे और बाद में प्रमोट होकर लैब एसिस्टेंट बनें. ग्रामीणों ने बताया कि गुरनाम सिंह का पद भले ही छोटा था लेकिन उनकी सोच बहुत बड़ी थी. सभी ग्रामवासी आज उनकी सोच के प्रति समर्पित है.

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पिता को समर्पित है लाइब्रेरी: गुरदीप सिंह

गुरदीप ने बताया कि उन्होंने लाइब्रेरी का नाम अपने पिता के नाम पर गुरनाम सिंह मेमोरियल लाइब्रेरी रखा है. यह लाइब्रेरी पूरी तरह से पिताजी को समर्पित है. गांव की लड़कियां जो शहर जाने में असमर्थ थीं, उन्हें लाइब्रेरी का सबसे ज्यादा फायदा पहुंचेगा.

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