राज्य में सरकार गठन के बाद उपमुख्यमंत्री के पद से संतोष करने वाले सचिन पायलट, शुरू से ही गृह विभाग मांग रहे थे. लेकिन, उनको पंचायत राज और सार्वजनिक निर्माण विभाग मिले. दूसरा, सचिन अक्सर अशोक गहलोत को निशाने पर रखते थे. जैसे कोटा हस्पताल केस में खिलाफ बयानबाजी, गहलोत के लड़के वैभव गहलोत को हराने में सचिन का अप्रत्यक्ष हाथ होने की बात और सत्ता व संगठन में नज़र आने वाली वर्चस्व की लड़ाई.
वर्तमान परिदृश्य क्या है?
सचिन की पार्टी विरोधी गतिविधियों को देखते हुए गहलोत ने सचिन पायलट पर जम कर निशाना साधते हुए कहा- “हिंदुस्तान में राजस्थान एकमात्र ऐसा राज्य है जहां सात साल में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने की कभी मांग नहीं हुई. हम जानते थे कि ‘निक्कमा’ है, ‘नकारा’ है, कुछ काम नहीं कर रहा है … खाली लोगों को लड़वा रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘फिर भी राजस्थान में हमारी संस्कृति ऐसी है. हम नहीं चाहते थे कि दिल्ली में लगे कि राजस्थान वाले लड़ रहे हैं. उनका मान- सम्मान रखा. प्रदेश कांग्रेस को कैसे सम्मान दिया जाता है वह मैंने राजस्थान में लोगों को सिखाया. उम्र नहीं पद मायने रखता है.’’ मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मान सम्मान पूरा दिया. सब कुछ किया… वह व्यक्ति कांग्रेस की पीठ में छुरा भोंके जाने के लिए तैयार हो जाए”.
वहीं इसके प्रत्युतर में सचिन पायलट ने कहा कि – “ऐसे बेबुनियाद और फर्जी आरोपों से हैरान होने के बजाय दुखी हूँ. यह पूरी तरह से मेरी छवि को खराब करने के लिए किया गया है. इसलिए भी किया गया, क्योंकि कांग्रेस के सदस्य रहते हुए मैंने सूबे में पार्टी नेतृत्व को लेकर सवाल दागे. ये कोशिशें मुझे बदनाम करने और मेरी साख पर हमला करने के मकसद से की गई हैं. जिस भी विधायक ने मेरे खिलाफ ऐसे आरोप लगाए हैं, मैं उनके खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कदम उठाऊंगा’.
भविष्य की राह
अभी राजस्थान विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी ने 19 विधायकों को अयोग्यता का नोटिस भेजा है. जिसको लेकर यह विधायक राजस्थान हाईकोर्ट में गए हैं. जहां पर अभी मामले की सुनवाई हो रही है तथा हाइकोर्ट यह याचिका स्वीकार करता है या नहीं, यह देखने वाली बात है. विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी है तथा असन्तुष्ट विधायकों के वकील हरीश साल्वे है.
संविधान क्या कहता है?
विधानसभा अध्यक्ष राज्य मे इस तरह की परिस्थितियों को देखते हुए साल 1985 में पास किए गए दल बदल क़ानून के तहत नीचे लिखी स्थितियां उत्पन्न होने पर सदस्यता रद्द कर सकते हैं:-
- अगर कोई विधायक ख़ुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है.
- अगर कोई निर्वाचित विधायक पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाता है.
- अगर कोई विधायक पार्टी व्हिप के बावजूद मतदान नहीं करता है.
- अगर कोई विधायक विधानसभा में अपनी पार्टी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है.
लेकिन कई बार इस तरह के फ़ैसले कोर्ट भी पहुँचे हैं. हालांकि, मूलत: इस क़ानून के तहत विधायकों की सदस्यता रद्द करने पर विधानसभा अध्यक्ष का फ़ैसला ही अंतिम होता था. लेकिन साल 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया कि स्पीकर के फ़ैसले की क़ानूनी समीक्षा (ज्यूडिशियल रिव्यू) हो सकती है. ऐसे में न्यायालय को स्पीकर के फ़ैसले की चार आधारों के तहत समीक्षा करने का अधिकार है. ये आधार माला फाइड (बुरे इरादे), परवर्सिटी (दुराग्रह), संविधान का उल्लंघन या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन हैं.
पायलट गुट के कानूनी जानकारों का मानना है कि विधायकों की सदस्यता रद्द करने की चार शर्तों में से एक भी सचिन पायलट पर लागू नहीं होती है:-
क्योंकि
◆ न तो पायलट ने पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र दिया है,
◆ न ही वे पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ गए हैं,
◆ न उन्होंने पार्टी व्हिप का उल्लंघन किया है और
◆ न ही विधानसभा में अपनी पार्टी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है.
लेकिन अभी आपको बता दे कि राजस्थान के मामले में अब तक विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने विधायकों की सदस्यता रद्द किए जाने पर कोई फ़ैसला नहीं लिया है.
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