करनाल | दुधारू पशुओं में सोमेटिक सेल्स की संख्या का सीधा असर दूध की गुणवत्ता पर पड़ता है. हम सभी ने कहीं ना कहीं सुना होगा कि रोजमर्रा की जिंदगी में दूध एक अहम भूमिका निभाता है, लेकिन सवाल ये उठता है कि हमारे घर पहुंचने वाला दूध पोस्टिक है भी या नहीं? इस मामले में करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) में प्रभावाशाली अनुसंधान हुआ है. जिससे आज हम जान सकते है कि दुधारु पशुओं में सोमेटिक सेल्स जितने कम होंगे उसके दूध की गुणवत्ता उतनी अच्छी होगी. शोध में पाया गया है कि भारतीय दुधारु पशुओं में सोमेटिक सेल्स की संख्या अधिक होती है. इसी कारण यह उतना ज्यदा पौष्टिेक नहीं होता है और भारत का दूध अंतरराष्ट्रीय स्तर नहीं बिक पाता है.
सोमेटिक सेल काउंट को समझने की कोशिश
सोमेटिक सेल काउंट दूध में शामिल दैहिक कोशिकाओं की एक कोशिका की गिनती होती है. इससे दूध की गुणवत्ता का पता लगाया जा सकता है. विशेष करके, हानिकारक बैक्टीरिया व उच्चस्तरीय खाद्य सुरक्षा असंदिग्ध अर्थ करने के लिए इसे परखा जाता है. सफेद रक्त कोशिकाएं ज़्यादातर दैहिक कोशिकाओं का निर्माण करती हैं. सोमेटिक सेल बढ़ने से दूध में फैट घट जाता है. इस कारण यह दूध पीने योग्य भी नहीं रहता है.
एनडीआरआइ के लेक्ट्रेशन एंड इम्युनोफिजियोलॉजी विभाग की प्रयोगशाला में इसके लिए नए उपकरणों की मदद ली जा रही है. विभाग के प्राचार्य साइंटिस्ट डा. अजय डांग ने बातचीत में बताया कि भारत में आमतौर पर दूध की गुणवत्ता मापने के लिए फैट वैल्यू पर ध्यान देते हैं लेकिन, विकसित देशों में सोमेटिक सेल की मात्रा की जांच कर उसे अहम भूमिका दी जाती है. इस वजह से भारतीय पशुओं में सोमेटिक सेल की मात्रा अधिक मिलने से दूध, दूध से बने पदार्थ निर्यात नहीं हो पाते हैं. साथ ही, इस सबसे कीमतों पर भी इसका भारी असर पड़ता है.
देसी गाय है बेहतर
भारत में गाय की 39 और भैंस की 13 विभिन्न प्रजातियां हैं. समस्त दूध उत्पादन का 51 फीसद भैंसों के द्वारा हमे मिलता है. 20 फीसद देसी व शेष अन्य नस्ल की गायों से प्राप्त होता है. देसी गाय मौसम से उत्तपन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए समर्थ होती हैं. इसीलिए भारतीयों द्वारा देसी गायाें में सोमेटिक सेल घटाने की मांग पर विचार करने के लिए निवेदन किया जा रहा है. ताकि दूध की गुणवत्ता के स्तर पर ये विदेशी नस्लों को पिछे छोड़कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात में बेहतर प्रदर्शन दिखा सकें. एम एस चौहान, निदेशक, एन डी आर आइ, करनाल ने कहा कि इसके लिए खास मापदंड तय किए गए हैं जबकि उससे पहले पशुपाकों को भी इन सभी कार्यों के बारे में सूचित करेंगे.
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