नई दिल्ली । कृषि प्रधान भारत देश में खेती लगभग मॉनसून पर ही निर्भर है. फसलों के उत्पादन में मॉनसून की प्रमुख भूमिका रहती है. इसके कोई दोराय नहीं है कि मॉनसून की देरी से कृषि उपज प्रभावित होती है. इसके पीछे की वजह देश में सिंचाई के लिए पानी की कमी है. सामान्यत देखा जाए तो भूगर्भ जल,नदी और तालाबों का जलस्तर भी लगातार घट रहा है. जिसकी वजह से देश के कई हिस्सों में सिंचाई के पानी का संकट खड़ा हो गया है.
किसानों की इसी समस्या के समाधान हेतु बिहार की बेटी ने सिंचाई की नई तकनीक विकसित की है. परंपरागत सिंचाई की बदहाल स्थिति और खेती में समस्याओं से जूझ रहे किसानों को देख एमटेक की स्टूडेंट प्रियवंदा प्रकाश ने ‘पानी की गोली’ तैयार करने में सफलता प्राप्त की है. इसके जरिए पानी की कमी वाले इलाकों में आसानी से सिंचाई के लिए पानी की किल्लत से छूटकारा मिल सकेगा.
क्या है यें पानी की गोली ?
प्रियवंदा प्रकाश वर्तमान में त्रिपुरा विश्वविद्यालय के केमिकल साइंस डिपार्टमेंट से एमटेक की पढ़ाई कर रही है. उन्होंने अपने सहपाठी दीपांकर दास के साथ मिलकर हाइड्रोजैल यानि पानी की गोली तैयार की हैं और किसानों की सिंचाई की समस्या का निदान प्राप्त करने में सफलतापूर्वक एक कदम बढ़ाया है. ये गोलियां 35 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी कारगर है.
4 K.G हाइड्रोजैल से होगी एक हेक्टेयर भूमि की सिंचाई
PBNS की रिपोर्ट के मुताबिक चार किलो हाइड्रोजैल से एक हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकती है. उन्होंने सेल्यूलोज नैनोक्रिस्टल निकालने में सफलता अर्जित की है. अब इन हाइड्रोजैल गोलियों की अवशोषण क्षमता को 600 फीसदी तक बढ़ाने में सफलता हासिल हो गई है. प्रयोगशाला से बाहर आते ही यह अनुसंधान कृषि क्षेत्र के लिए किसी क्रांति से कम नहीं होगा.
जैल की गोलियां मिट्टी में आठ माह से एक साल तक असरदार साबित होंगी. इसके प्रयोग से कृषि में 30% तक उत्पादन वृद्धि का भी अनुमान है.
क्या है यें तकनीक, कैसे काम करती है?
इस हाइड्रोजैल से निर्धारित मात्रा में पानी विवरण के कारण भूमि में पानी का ठहराव की संभावना 50 से 70% तक बढ़ जाएगी. इसके इस्तेमाल से मिट्टी का घनत्व में भी 10% तक की कमी देखने को मिलेंगी. जैल देने से अर्द्ध शुष्क और शुष्क भागों में खेती पर चमत्कारी प्रभाव आने की संभावना जताई गई है. यह मिट्टी में वाष्पीकरण, बनावट आदि को भी प्रभावित करेगा और साथ ही बीज, फूल और फलों की गुणवत्ता के साथ सुक्ष्म जीवों की गतिविधियां भी बढ़ जाएगी. सूखे की मार से भी खेती का बचाव होगा.
हाइड्रोजैल से नहीं होता पर्यावरण प्रदुषण
इसके इस्तेमाल से फसल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेलने में सक्षम होगी. नैचुरल तरीके से नष्ट होने वाले सेल्यूलोज आधारित हाइड्रोजैल आसानी से प्रकृति में सूर्य के प्रकाश से क्षय हो जातें हैं और इनसे पर्यावरण को भी कोई हानि नहीं पहुंचेगी. यह आसानी से पानी को सोखने का काम करता है और जमीन में पानी का रिसाव भी बढ़ जाएगा.
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