नई दिल्ली | भारत देश में सफाई कर्मियों की सीवर, गंदगी भरी नालों, सेप्टिक टैंक आदि की सफाई के दौरान कई बार मौत हो जाती है. अक्सर आसपास से खबरें भी सामने आते हैं कि सीवर सफाई या फिर गंदगी भरे नालों की सफाई के दौरान सफाईकर्मी की मौत हो गई और इनकी मौत का आंकड़ा भी कोई कम नहीं. लेकिन संसद में सरकार द्वारा इन सफाई कर्मियों की मौत को लेकर जो जवाब सामने आया वह बेहद चौंकाने वाला है.
28 जुलाई को संसद में राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान राज्यसभा सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे और डॉ एल हनुमनथप्पा सत्ता पक्ष से सफाई कर्मियों की मौत से जुड़े कई सवाल पूछे. इन्हीं सवालों में एक सवाल यह भी था कि पिछले पांच साल में सीवर सफाई का काम करने वाले कितने लोगों की मौत हुई है? सामाजिक न्याय मंत्रालय की ओर से आया जवाब चौंकाने वाले था. मंत्रालय ने लिखित जवाब दिया कि पिछले 5 साल में मैनुअल स्कैवेंजिंग (हाथ से नाला साफ करना) के दौरान किसी भी सफाईकर्मी की मौत नहीं हुई है.
राज्यसभा में 28 जुलाई के दिन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रामदास आठवले ने सफाईकर्मियों की मौत से जुड़े सवाल के जवाब में कहा कि देश में पिछले 5 साल में हाथ से नाला साफ करने वाले एक भी सफाईकर्मी की मौत नहीं हुई है. लेकिन यहां पर दिलचस्प और गौर करने वाली बात यह है कि इसी साल फरवरी में लोकसभा में एक सवाल का लिखित जवाब देते हुए रामदास आठवले ने कहा, बीते 5 साल में सेप्टिक टैंक और सीवर सफाई के दौरान 340 सफाई कर्मियों की मौत हुई. सफाई कर्मियों की मौतों का यह डाटा 31 दिसंबर 2020 तक का था.
वहीं सरकार के ही सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने भी 2020 में अपनी रिपोर्ट जारी की थी. राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2010 से लेकर 2020 तक यानी दस साल में सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई के दौरान 631 सफाईकर्मियों की मौत हुई है. आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि रामदास आठवले 5 महीने पहले सफाई कर्मियों के मौतों का आंकड़ा लोकसभा में बता रहे थे अब 5 महीने बाद राज्यसभा में उन्हीं के द्वारा कहा जाता है कि पिछले 5 सालों में किसी भी सफाई कर्मी की मौत नहीं हुई.
तर्क अपने-अपने
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने मामले के ऊपर कहा, किसी भी स्थाई कर्मचारी से सीवर की सफाई नहीं करवाई जाती है. सभी नालों की सफाई मशीनों से होती है. हां, लॉकल स्तर पर कुछ ठेकेदार लोगों को पैसे का लालच देकर सीवर साफ करवाने का काम करते हैं. आयोग ऐसे ठेकेदारों के खिलाफ सख्ती से पेश आता है. इस तरह आधिकारिक तौर पर देखा जाए तो सफाईकर्मियों की मौत नहीं हुई है.
वहीं दूसरी ओर, सामाजिक कार्यकर्ता विक्की चिनालिया ने सरकार के इस रुख पर आपत्ति जताते हुए कहा, सरकार की ओर से यह कहना कि पिछले 5 साल में किसी भी सफाईकर्मी की मौत नहीं हुई, बहुत दुखद है. सरकार के इस ब्यान से पता चलता है कि सरकार सफाईकर्मियों को लेकर संवेदनशील नहीं है.
मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़ा कानून
2013 में सरकार द्वारा मैनुअल स्कैवेंजिंग को परिभाषित करने के लिए कानून तैयार किया गया. मैनुअल स्कैवेंजिंग (हाथ से नाला साफ करना) एक्ट, 2013 के अनुसार केवल उसी सफाईकर्मी को इस श्रेणी में रखा जाएगा जो स्थाई कर्मचारी होगा लेकिन वहीं दूसरी ओर सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए अधिकतर सफाई कर्मचारी ठेके पर रखे जाते हैं. इसलिए जिन सफाई कर्मियों की सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए मौत होई है उनकों सरकारी आंकड़ों से बाहर रखा गया हैं. ठेके पर काम करने वाले सफाईकर्मियों को सरकार की ओर से किसी तरह की सरकारी सहायता नहीं दी जाती है. यानी अगर कोई सफाईकर्मी सभी सुरक्षा यंत्रों के साथ सेप्टिक टैंक में सफाई के लिए उतरता है तो उसको भी हाथ से नाला साफ करने वाले सफाईकर्मियों की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा.
अब सरकार द्वारा पूरे मामले के ऊपर तकनीकी परिभाषा का हवाला देकर बचने का पूरा प्रयास किया जा रहा है. सरकारी दावे के अनुसार, फरवरी 2020 में जो आंकड़े पेश किए गए उनमें मैनुअल स्कैवेंजिंग शब्द का प्रयोग न करके सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई का इस्तेमाल किया गया था. शब्द कोई भी हो मृत्यु तो मृत्यु ही होती है.
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