हरियाणा बोर्ड, भिवानी । संस्कृत भारतीय उपमहाद्वीप की भाषा है, इसे ‘देववाणी’ और ‘सुरभारती’ भी कहा जाता है. संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, यह एक हिंदी- आर्य भाषा है जो कि हिंद- यूरोपीय भाषा परिवार की एक शाखा है. आमतौर पर संस्कृत को विभिन्न भाषाओं की जननी भी कहा जाता है, यानी आधुनिक भारतीय भाषाएं जैसे- हिंदी, बांग्ला, मराठी, सिंधी, पंजाबी, नेपाली आदि इसी संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुई हैं. इन भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी सम्मलित है.
संस्कृत भाषा को हरियाणा में कक्षा तीन से लेकर बारहवीं तक एक अनिवार्य विषय के रूप में लागू करने की तैयारी चल रही है. हिमाचल प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में पहले से ही अनिवार्य विषय के रूप में लागू की जा चुका है.
दरअसल संस्कृत भारती और भारत संस्कृत परिषद, हरियाणा संस्कृत अध्यापक संघ, आर्य समाज संगठनों ने छह माह पहले हरियाणा में संस्कृत को कक्षा तीन से 12वीं तक अनिवार्य विषय बनाने को मुख्यमंत्री के नाम पत्र भेजा था. अब मुख्यमंत्री ने इस पहल को आगे बढ़ाते हुए इस पत्र को शिक्षा विभाग के डायरेक्टर के पास भेजा है. इस पत्र के माध्यम से डायरेक्टर ने स्कूलों, संस्कृत से जुड़े संगठनों, शिक्षाविदों से इस बारे में सुझाव मांगे हैं.
भारतीय संस्कृति को जीवंत रखा जा सकेगा: डॉ. मुरलीधर शास्त्री
भारतीय संस्कृत परिषद के उपाध्यक्ष डॉ मुरलीधर शास्त्री ने कहा है कि अगर तीसरी से 12वीं तक संस्कृत को अनिवार्य विषय बनाया जाता है, तो ऐसे में हमारे देश की संस्कृति को बचाया जा सकेगा. संस्कृत में ही हमारे देश की आत्मा बसती है. साथ ही उन्होंने कहा कि आइए हम सब मिलकर संस्कृत को अनिवार्य विषय बनाने के रूप में सकारात्मक प्रयास करें.
अनिवार्य रूप में पढ़ाई जा सके संस्कृत: डॉ. भारत
साहित्यकार एवं कवि डॉ. मनोज भारत ने कहा कि अगर नवीं से बारहवीं तक संस्कृत को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है तो यह स्वागत योग्य है. वैकल्पिक के रूप में भी रखना पड़े तो मात्र भाषा के रूप में होनी चाहिए. शारीरिक शिक्षा, संगीत, कृषि कला आदि प्रायोजित विषय के विकल्प के रूप में नहीं.
संस्कृत का इतिहास
संस्कृत भाषा को देववाणी और विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक मानी जाती है. संस्कृत में लिखी गई पाण्डुलिपियों की संख्या आज भी विश्व की सबसे अधिक मानी जाती है. ऐसा कहा जाता है कि इसकी समस्त पाण्डुलिपियों को अभी भी नहीं पढ़ा जा सका है. दरअसल संस्कृत भाषा का साहित्य बहुत विस्तृत है.
कालिदास, अभिनवगुप्त, शंकराचार्य जैसे अनेक नाम हैं जो संस्कृति भाषा के मूर्धन्य विद्वानों में से एक हैं. साहित्य के अलावा आयुर्वेद के क्षेत्र में भी दर्शन के क्षेत्र में भी तथा विज्ञान आदि के क्षेत्र में भी अनेक विद्वान इस भाषा के ज्ञाता पाए जाते हैं. संस्कृत भाषा हमारे भारत की लगभग समस्त भाषाओं की जननी है. हिन्दी और उर्दू इसकी प्रमुख संतानों में से हैं. संसार की समस्त भाषाओं को भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर चार भागों में विभाजित किया गया है. (यूरोप- एशिया) अफ्रीका भूखण्ड, प्रशांत महासागरीय भूखण्ड इसके भाग हैं. यूरेशिया (यूरोप- एशिया) परिवार की एक शाखा भारोपीय परिवार है. इस भारोपीय परिवार की 10 शाखा है जिसमें से एक शाखा भारत-इरानी (आर्य) परिवार है. इसके तीन उपवर्ग हैं – ईरानी , दरद , और भारतीय आर्यभाषा. भारतीय आर्यभाषा से ही संस्कृत भाषा की उत्पत्ति होती हैं.
वर्षों पुरानी मांग हुई पूरी: प्रसाद
हरियाणा राजकीय संस्कृत अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष रामप्रसाद ने कहा कि हमारी वर्षों से यह पुरजोर मांग रही है. संस्कृत को कक्षा 3 से ही अनिवार्य विषय के रूप में लागू किया जाए. यह सब होने पर बच्चों में अच्छे संस्कार पैदा होंगे. अच्छे संस्कार होंगे तो अच्छे समाज का निर्माण होगा.
अच्छे संस्कारों के लिए संस्कृत भाषा जरूरी: निदेशक
हरियाणा संस्कृत अकादमी के निदेशक डा. दिनेश शास्त्री ने कहा कि संस्कृत ही संस्कार हैं. जीवन में अच्छे संस्कारों के लिए स्कूलों में क्लास 3 से ही संस्कृत का अनिवार्य होना जरूरी है. सरकार इस बारे में सार्थक पहल कर रही है, तो यह बहुत ही सराहनीय है. संस्कृत अनिवार्य विषय हो जाता है तो इसके बहुत ही सार्थक परिणाम आएंगे.
गौरतलब है हरियाणा शिक्षा बोर्ड एक अनोखा प्रयास कर रहा है. जल्द ही कक्षा तीन से लेकर बारहवीं तक संस्कृत को अनिवार्य विषय बना दिया जाएगा. हरियाणा शिक्षा विभाग के डायरेक्टर ने विद्यालयों, संस्कृत से जुड़े संगठनों व शिक्षाविदों को इस बारे में पत्र भेजकर राय मांगी है.
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