जानिए महाभारत के साक्षी वटवृक्ष की कहानी, जहां श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था गीता का उपदेश

कुरुक्षेत्र । हरियाणा के कुरुक्षेत्र में जिस वटवृक्ष के नीचे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था वह वृक्ष आज भी मौजूद है. बता दें कि ज्योतिसर के इस बरगद को महाभारत का एकमात्र साक्षी माना जाता है. जानिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर वट वृक्ष की कहानी उसी की जुबानी

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जानिए महाभारत के साक्षी वटवृक्ष की कहानी उसी की जुबानी 

मैं अक्षय वट हूं, महाभारत के युद्ध का एकमात्र साक्षी. मैं वही बरगद हूं जिस की छांव में धनु धारी अर्जुन ने परिजनों के खिलाफ शास्त्र उठाने से इंकार कर दिया था. तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें आत्मा और शरीर का परम ज्ञान दिया था. गीता उपदेश के 18 अध्याय में हर शब्द व हर नाद को मैंने सार सहित सुना. मैंने नर को कर्म और फल का रहस्य समझाते नारायण के विशाल रूप का दर्शन भी किया. हरियाणा के कुरुक्षेत्र से 8 किलोमीटर दूर पेहोवा रोड पर ज्योतिसर में आज भी गीता के उस अजर अमर ज्ञान की तरह मैं चिरंजीव हूं.

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चिर युगो से बिना ऐतिहासिक प्रमाणों के चली आ रही इस जीवन गाथा की सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि किसी भी ग्रंथ में मुझे स्थान नहीं दिया गया. बस परंपराओं के एक विश्वास की कहानी ने मुझे आगे बढ़ाया. वही एक समय ऐसा आया कि यह परंपराएं और आस्था ही मेरे जीवन के लिए समस्या बन गई. इनके भार से मुझे गहरे घाव भी मिले और युगों की इस यात्रा पर संकट खड़ा हो गया. वही मेरी स्थिति को देख मुझे नया जीवन देने के लिए कुछ प्रयास शुरू किए गए. यह प्रयास फलीभूत भी हुए.

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बता दें कि ज्योतिसर स्थित महाभारत के साक्षी अक्षय वट वृक्ष के प्रति लोगों की आस्था ही उसके जीवन के लिए खतरा बन गई थी. यहां आने वाले श्रद्धालु भारी संख्या में वटवृक्ष पर परांदे बांध देते जिस वजह से उस पर गहरे निशान होने के कारण पेड़ की शाखाएं सूखने लगी. परिक्रमा मार्ग पर चारों और संगमरमर का पत्थर लगाने से पेड़ों की जड़ों तक ऑक्सीजन ठीक से नहीं पहुंच पाती. जिस वजह से पेड़ लगातार धीरे-धीरे कमजोर हो गया.

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वही इस अक्षय वट वृक्ष पर लाइट एंड साउंड शो के लिए लेजर लाइट लगाई गई थी. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ने लगी पत्ती और टहनियों पर इसका असर भी दिखाई देने लगा. वही पक्षियों से बचाव के लिए पेड़ पर एक जाल लगा दिया गया. जाल को टांगने के लिए कीले  लगाई गई जहां-जहां जाल को बांधा गया,  वहां गहरे निशान बन गई जिस वजह से पेड़ की नमी सूखने लगी. 2015 के बाद वृक्ष की खराब हालत को देखते हुए कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा विशेषज्ञों से संपर्क किया गया.

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