विलुप्ति की कगार पर महाभारत काल की सुरंगे, लाक्ष्यगृहो से बचकर यहीं से निकलें थे पांडव

कैथल । कैथल जिले के हल्के कलायत में श्री कपिल मुनि तट पर स्थित श्मशान भूमि में प्राचीन काल की निशानी धरोहर सुरंग प्रशासन की बेरुखी के चलते विलुप्त होने के कगार पर है. इस सुंदर का अधिकतर हिस्सा खंडहर में तब्दील हो चुका है.जबकि अन्य स्थान पर जाने का जरिया माने जाने वाले मुहाने भी कूड़े-कचरे से बंद हो चुके हैं. छोटी ईंटों से बनाई गई यह सुरंग प्राचीन काल इतिहास का बेजोड़ नमूना है. शिव शमशान वेलफेयर सोसायटी प्रधान राधेश्याम ने बताया कि प्रशासन के सामने इन सुरंगों के विकसित करने की मांग को लेकर कई बार गुहार लगा चुके हैं लेकिन प्रशासन की बेरुखी ने इसे जंगली वनस्पतियों का घर बना दिया है. हमारी प्रशासन से अपील है कि यहां पर साफ-सफाई करवाकर इस प्राचीन धरोहर को संजोया जाएं.

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अतीत के झरोखे की निशानी धरोहर के संबंध के चलते समाज सेवी संस्थाओं ने इसके निर्माण से किसी तरह की छेड़छाड़ की मजाकत नहीं की. उनकी कोशिश है कि वास्तु स्थिति से भारतीय पुरातत्व विभाग, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड और संबंधित अन्य विभाग को रुबरु करवाने के पक्षधर हैं. माना जा रहा है कि इन सुरंगों का महाभारत काल से संबंध रहा है. इसी सुरंग के जरिए पांडवों और स्वयं को माता कुन्ती सहित लाक्षाग्रह की घटना का शिकार होने से बचाया था.

इतिहासकार मानते हैं कि इस इलाके को महाभारत युद्ध का अंतिम छोर भी कहा जाता है. बावजूद इसके पर्यटन विभाग और प्रशासन की अनदेखी के चलते महाभारत समकालीन सुरंगों का अस्तित्व खात्मे के कगार पर है. इन सुरंगों से कुछ ही मीटर की दूरी पर कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा प्राचीन कपिल मुनि धाम संरक्षण की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं.

वहीं भारतीय पुरातत्व विभाग ने पंच रथ शैली से निर्मित शिव मंदिर व चिमन बाबा समाधि के साथ इसी परिसर में स्थित स्नान कुंडों को अधिकृत कर रखा है. सामाजिक संगठनों की मांग है कि प्रशासन के साथ संबंधित विभाग को गंभीरता दिखाते हुए सुरंगों से जुड़े विषयों का अध्ययन करते हुए इसके कायाकल्प करने बारे विचार करना चाहिए. शमशान भूमि में एक और छोटी ईंटों के खंडहर के नीचे क्या है,यह सवाल भी हर किसी के लिए रहस्य बना हुआ है.

कई गांवों को जोड़ती है सुरंगे

शमशान भूमि से सुरंगे कलायत क्षेत्र के गांव सजूमा स्थित प्राचीन सुखदेव मुनि के मंदिर तक जाती है. बताया जाता है कि प्राचीन खड़ालवा शिव मंदिर,लौधर और साघंन से भी ये सुरंगे जुड़ी हुई है. इन सभी जगहों पर इन सुरंगों के मुहाने है.

 

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