कैथल । मजरूह सुल्तानपुरी का एक शायर तो आपने सुना ही होगा ”मैं अकेला ही चला था जानिब- ए- मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया”. कुछ ऐसा ही कारवां देखने को मिल रहा है कैथल जिले के एक गांव सिरसल में , जहां की महिलाएं आत्मनिर्भर बन कर हर किसी को प्रभावित कर रही है. आत्मनिर्भरता की राह में गांव की इन महिलाओं ने पुराने वस्त्रों से दरियां बनानी शुरू की थी जिनकी मांग अब दूर-2 तक हों रही है.
गांव सिरसल की 10 महिलाएं प्रधान आरती व सचिव किरण देवी के नेतृत्व में राधा नाम से एक ग्रुप तैयार किया हुआ है. इस ग्रुप में इनके अलावा अन्य महिलाएं माया,सोना, प्रकाशो,रीना, सोनिया,विधा, पिंकी व रीना शामिल हैं जो घर पर सूत वाली दरी व पुराने कपड़ों से दरियां बनाने का काम करती है.
जानिए दरियों की कीमत
सूत वाली एक दरी तैयार करने पर इन्हें 1700-1800 रुपए लागत आती है जो बाजार में 2500-2600 रुपए कीमत में बिक जाती है. प्रति दरी इन महिलाओं को 700-800 रुपए की बचत हो जाती है. इसी प्रकार पुराने वस्त्रों से तैयार की गई दरी पर 350 रुपए लागत आती है जो बाजार में 500-600 रुपए में बिक जाती है. इस तरह प्रति दरी 300-350 रुपए बचत हो जाती है.
10-12 सालों से कर रही है काम
महिला आरती व किरण बताती है कि वे पिछले 10-12 साल से इस कार्य से जुड़ी हुई है. तीन साल पहले भारत सरकार द्वारा संचालित आजिविका मिशन से जुड़कर राधा के नाम से ग्रुप बनाया था. उन्होंने बताया कि 10-15 दिनों में सूत वाली दरी व 4-5 दिन में पुराने वस्त्रों से बनने वाली दरी तैयार हो जाती है.
राधा ग्रुप की प्रधान आरती ने बताया कि दरी तैयार करने के लिए धागा सहित अन्य सामान पानीपत से मंगवाया जाता है. कैथल के साथ-2 दूसरे जिलों में भी दरी की सप्लाई की जाती है. बाहरी जिलों से ऑर्डर मिलते रहते हैं. इसके अलावा प्रशासन द्वारा लगाए जाने वाले मेलों में भी दरियों की प्रदर्शनी की जाती है जिससे ग्राहकों की मांग और अधिक बढ़ जाती है.
फोन पर आते हैं ऑर्डर
राधा ग्रुप की प्रधान आरती ने बताया कि ग्रुप की कुछ महिलाएं दरी बनाने के काम में पहले से ही निपुण थी. इसके अलावा आजीविका मिशन की ओर से भी प्रशिक्षण दिलाया गया था. कई महिलाओं ने घर पर ही दुकान बनाई हुई है. गांव के अलावा आसपास के गांवों में भी दरियों की काफी डिमांड रहती है. इसके अलावा फोन पर भी ऑर्डर आते रहते हैं.
इसके अलावा इस गांव में कई महिलाएं ग्रुप बना कर कपड़े की दुकान,मनियारी की दुकान,बैग, मोमबत्ती सहित अन्य प्रकार के कार्य कर रही है. आजिविका मिशन के जरिए इन महिलाओं का ग्रुप तैयार कर ट्रेनिंग दी जाती है.कई महिलाओं ने बैंकों से लोन लेकर अपना काम शुरू किया हुआ है. इस लोन की राशि को बाद में वो आसान किश्तों के माध्यम से चुकता कर रही है. इस गांव की महिलाएं आत्मनिर्भरता के मामले में आसपास के क्षेत्र की महिलाओं के लिए मिशाल कायम कर रही है और इन्हें देखकर दूसरी महिलाएं भी इनसे जुड़ रही है.
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