बहादुरगढ़ | किसानों के आंदोलन के बीच संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े कई संगठनों कि नेताओं के अलग-अलग ऐलान तथा बयानों से किसानों के बीच असमंजस्य की परिस्थितियां बन गई हैं. जिसके कारण इस बात पर भी संदेह हैं. कि दिल्ली के टिकरी बॉर्डर से आना-जाना जारी रहने पर भी संदेह की स्थितियां बन गई है.
आपको बता दें कि संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से दिल्ली कूच का ऐलान किया गया है. उसी दिन से संसद का स्तर भी प्रारंभ होना है. जिसके कारण इस बात पर भी अभी संशय है कि कुछ दिनों पहले खुले टिकरी बॉर्डर को कहीं दोबारा तो बंद नहीं किया जाएगा. आंदोलनरत किसानों के बीच असमंजस्य की परिस्थितियां उत्पन्न हो गई है. प्रदर्शनकारियों को यह तक स्पष्ट नहीं है की टिकरी बॉर्डर का रास्ता खुला रहेगा या दोबारा बंद किया जा सकता है.
संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से ऐलान किया गया कि वह संसद मार्च करेंगे ऐसे में गौरतलब यह है, कि दिल्ली की सड़कों पर पुलिस प्रशासन ट्रैक्टरों को बिना किसी अनुमति के नहीं जाने देंगे. ऐसे में टकराव की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती हैं. यह भी कहा जा रहा है कि जहां पर पुलिस प्रशासन द्वारा प्रदर्शनकारियों को यदि रोका जाएगा तो वह सड़क पर वही बैठ जाएंगे. दूसरी बात यह है कि सिंधु बॉर्डर पर मंगलवार को एक प्रमुख बैठक हुई थी. जिसमें भी गुटबाजी देखी गई है. इस बैठक में चंदे का हिसाब मांगने के संदर्भ में तकरार पैदा हो गई है.
जाने क्या हुआ सिंधु बॉर्डर पर किसानों की बैठक में
दरअसल तनाव यहां से उत्पन्न हुआ जब हरियाणा संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कुछ दिन पहले संयुक्त किसान मोर्चा को मिले चंदे का हिसाब मांग लिया. जिसके बाद दो गुट बन गए और एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे कि उन्होंने ऐलनाबाद के चुनाव में विपक्षी पार्टियों से 25 लाख व 60 लाख प्रचार करने के लिए लिए हैं. सूचना के अनुसार यह कहा जा रहा है कि यह आरोप लगने के बाद दोनों गुटों के बीच नाराजगी की स्थिति और बढ़ गई तथा एक दूसरे को अपशब्द भी कहे गए.
हरियाणा के किसान नेता जगबीर घसोला का कहना है कि जिन दो नेताओं के बीच में मोर्चे की मीटिंग के दौरान आपस में खींचातानी और तनाव बढ़ा उसकी वजह से संयुक्त किसान मोर्चा की गरिमा को ठेस पहुंची है. जिन दो नेताओं के बीच चंदे के संदर्भ में तकरार हुई है उसके फलस्वरूप पूरे देश के किसानों के बीच गलत संकेत गए हैं.
इसका सीधा असर किसान आंदोलन पर पड़ने वाला है. एक गुट के द्वारा 26 नवंबर को दिल्ली जाने की बात कही जा रही है. वहीं दूसरी ओर दूसरे गुट द्वारा 29 नवंबर को संसद घेराव की बात कही जा रही है. अब दो गुटों के नेता किसानों की मांगों और मुद्दों से भटकते नजर आ रहे हैं और चंदा जुटाने की बात के तकरार को देखते हुए गुटों में बंटे जा रहे हैं. इस प्रकार की गुटबाजी से आंदोलन की गरिमा पर प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में हरियाणा के अन्य किसान संगठनों और खाप पंचायतों को आगे आकर आंदोलन की बागडोर को संभालने की जरूरत है.
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