बवानीखेड़ा | आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में आमजन रोजी-रोटी कमाने के लिए पैसे के पीछे अंधा होकर दौड़ रहा है और वो इस कोशिश में समाज के ताने-बाने से बहुत दूर चला गया है. लेकिन क्षेत्र का एक गांव ऐसा भी हैं जिसमें लगभग 82 वर्षीय पर्यावरण प्रेमी देशराज भी रहते हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी पेड़-पौधों के नाम कर दी है.
पर्यावरण प्रेमी देशराज से जब बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें पेड़-पौधों में अपने बच्चों की परछाई नजर आती है. सुबह उठते ही सबसे पहले वो पौधों को निहारते हैं , पानी देते हैं और उनकी कटाई-छटाई करते हैं. उसके बाद हीं वो अपने रोजमर्रा के काम शुरू करते हैं. उन्होंने बताया कि न केवल मंढाणा, बल्कि बवानीखेड़ा, रेवाड़ी आदि जगहों पर वो अब तक करीब 2 हजार से अधिक पेड़-पौधे पार्कों और सार्वजनिक जगहों पर लगा चुके हैं जो अब बड़े होकर राहगीरों को छाया प्रदान कर रहे हैं.
आसपास के क्षेत्र में रिटायर टीचर डॉ देशराज पेड़ों वाले दादा के नाम से जाने जाते हैं. उन्होंने बताया कि जब उन्होंने पहली बार पेड़ लगाया तो वह किसी कारणवश जल गया. तब उन्होंने महसूस किया कि अगर यह पेड़ नहीं जलता तो न जाने कितने लोगों को फल-फूल देता. बस इसी झटके ने उनके जीवन को बदल दिया और वो पर्यावरण की राह पर चल पड़े. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और चाहें आंधी आएं या तूफान या फिर कड़ाके की ठंड ही क्यों न पड़ रही है ,उनकी अलसुबह पेड़-पौधों के साथ ही बीतती है.
गांव मंढाणा में वर्षों सेवाएं देने वाले और हालिया बवानीखेड़ा निवासी डॉ एवं रिटायर टीचर देशराज ने बताया कि उनका पैतृक जन्म पाकिस्तान में हुआं था. 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय महज 12 साल की उम्र में ही वो अपना सबकुछ पाकिस्तान में हीं छोड़कर हिसार जिलें के गांव खांडा खेड़ी में आकर बस गए थे. वर्ष 1954 में उन्होंने नारनौंद स्कूल से दसवीं कक्षा पास की और 1955 में जेबीटी ट्रेनिंग प्राप्त कर वहीं अध्यापक की पोस्ट पर नौकरी करने लगे. उन्होंने कहा कि 1994 में रिटायर होने के बाद वो गांव में ही गरीब बच्चों को फ्री में शिक्षा दें रहें हैं.
हमें Google News पर फॉलो करे- क्लिक करे! हरियाणा की ताज़ा खबरों के लिए अभी हमारे हरियाणा ताज़ा खबर व्हात्सप्प ग्रुप में जुड़े!