कैथल | कई शख्सियत ऐसी होती हैं जो लोगों के लिए प्रेरणादायक होती हैं. ऐसे ही एक मिसाल पेश की है कैथल के फर्श माजरा गांव के किसान वीरेंद्र यादव ने जो ऑस्ट्रेलिया जा बसे थे. परन्तु वहां मन नहीं लगने के कारण स्वदेश लौटे, परन्तु जब पराली के जलने से होने वाले प्रदूषण की समस्याओं से जब उनकी बेटी को दिक्कत होने लगी तो उन्होंने इसका समाधान निकालने के बारे में सोचा. और समाधान भी ऐसा निकाला कि औरों के लिए मिसाल बन गया.
वीरेंद्र यादव ने बातचीत में बताया कि उन्हें ऑस्ट्रेलिया की स्थाई नागरिकता मिल गई थी परंतु उनका मन भारत में ही था, इसलिए अपनी दोनों बेटियों व पत्नी के साथ वापस स्वदेश लौटकर उन्होंने पैतृक संपत्ति में ही अपनी खेती करने की सोची, परंतु पराली ने जब उनकी दोनों बेटियों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया व उन्हें एलर्जी हो गई तो उन्होंने इसका अचूक उपाय निकालने के बारे में सोचा.
काफी छानबीन के बाद उन्हें पता चला कि इसे बेचकर आमदनी हो सकती है , इसलिए उन्होंने एग्रो एनर्जी प्लांट व पेपर मील वालों से संपर्क किया जिन्होंने पराली को खरीदने का आश्वासन दिया, अतः उन्होंने सिर्फ अपने खेतों से ही नहीं बल्कि अन्य खेतों से भी पराली खरीद कर बेचना शुरू कर दिया, जिसमें सबसे जरूरी काम पराली को दबाकर गट्टे बनाने वाले संयंत्र का जुगाड़ करना था.
जिससे परिवहन में आसानी हो सके, इसलिए उन्होंने कृषि विभाग से सब्सिडी पर तीन स्ट्रॉबेलर खरीदे जिसमे प्रत्येक की कीमत 15लाख रुपये है जो पराली को संकुचित करके उसके गट्ठे बनाता है. अभी उनके पास ऐसे 4 स्ट्रा बेलर व अन्य सहित कुल डेढ़ करोड़ रुपये की मशीनरी है, जो पराली प्रबंधन में काम आती है. उन्होंने बताया कि उनके द्वारा किया गया सारा निवेश एक ही सीजन में उन्हें वापस मिल गया था.
उनके अनुसार केवल एक धान के सीजन में उन्होंने 3 हज़ार एकड़ जमीन से 70 हजार क्विंटल पराली के गट्ठे बनाये जो 135 रुपये क्विंटल के हिसाब से 50 हजार क्विंटल पराली कांगथली गांव के सुखबीर एग्रो एनर्जी प्लांट में बेची व बीस हजार क्विंटल पराली पिहोवा के सैंसन पेपर मिल को बेच चुके हैं. इस सीजन में 94 लाख 50 हजार रुपये का काम हो चुका है. जिसमें उनकी कुल बचत 50 लाख रुपये हुई है. साथ ही उन्होंने 200 लोगों को रोजगार भी दिया है जो उनके लिए भी हितकारी साबित हुआ है, अतः वीरेंद्र यादव की कहानी से उन युवाओं को सीख लेने की जरूरत है जो कुछ करने का दम्भ भरते हैं.
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