चंडीगढ़ | हरियाणा पुलिस ने अपनी मेहनत और लगन की बदौलत इस साल जनवरी से नवंबर तक 10868 लापता बच्चों और वयस्कों का पता लगाकर 10,000 से अधिक परिवारों के बीच खोई हुई मुस्कान को वापस लाने में सफलता हासिल की है. पुलिस बच्चों को ढूंढने में कामयाब हो गई है. इनमें 3839 लड़के और 7029 लड़कियां शामिल हैं जो किसी न किसी वजह से लंबे समय से लापता थे. हरियाणा के पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार अग्रवाल ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि इस वर्ष 1813 बाल भिखारियों और 2021 बाल मजदूरों को पुलिस ने पकड़कर छुड़ाया है. ये बच्चे दुकानों और अन्य जगहों पर अपनी आजीविका के लिए अजीबोगरीब काम करते पाए गए.
जानिए विस्तार से
यहां तक कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान भी, पुलिस टीमों ने न केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखते हुए अपराध पर अंकुश लगाया, बल्कि लापता बच्चों, महिलाओं और विशेष देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले लोगों को खोजने और उन्हें फिर से मिलाने की पूरी कोशिश की कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया. डीजीपी ने कहा कि बरामद बच्चों और वयस्कों में से 9372 का पता पुलिस की फील्ड इकाइयों ने लगाया और बाकी 1496 को राज्य अपराध शाखा की विशेष मानव तस्करी रोधी इकाई (एएचटीयू) द्वारा गहरी दिलचस्पी और समर्पण के साथ अंजाम दिया गया.
जानिए डीजीपी ने क्या बताया
इस नेक अभियान का उद्देश्य बताते हुए डीजीपी ने कहा कि पुलिस की भूमिका ऐसे बच्चों और वयस्कों की देखभाल और सुरक्षा प्रदान करना भी है जो किसी न किसी कारण से अपने परिवारों से अलग हो जाते हैं. हमारी टीमें बाल तस्करी पर अंकुश लगाने के साथ-साथ ऐसे बच्चों को भीख मांगने और अन्य असामाजिक गतिविधियों जैसे जबरन शादी, श्रम, घरेलू कामगार से बचाने के लिए इस नेक काम में लगन और लगन से काम कर रही हैं. उन्होंने कहा कि आश्रय गृहों जैसे संस्थानों के अलावा, हमारी पुलिस टीमें सार्वजनिक स्थानों जैसे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों और विभिन्न धार्मिक स्थलों पर भी जाती हैं ताकि लापता बच्चों/व्यक्तियों की तलाश की जा सके. ये अभियान ज्यादातर बाल कल्याण परिषदों, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) और अन्य संबंधित विभागों के सहयोग से चलाए जाते हैं.
डीजीपी ने एएचटीयू के एएसआई राजेश कुमार का विशेष रूप से उल्लेख किया, जो इस नेक काम के जरिए सैकड़ों परिवारों के चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए नेक काम कर रहे हैं. एक राष्ट्रीय स्तर के प्रकाशन ने हाल ही में अपनी नवीनतम पुस्तक में बच्चों को उनके परिवारों से परिचित कराने की राजेश की कहानियों को भी चित्रित किया है. उन्होंने कहा कि राजेश जैसे पुलिस कर्मियों ने अपने कर्तव्य से परे जाकर लोगों की सेवा करके सक्रिय पुलिसिंग की मिसाल पेश की है.
डीजीपी ने आम नागरिकों से भी सतर्क रहने और लापता बच्चों की तलाश से संबंधित गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया जैसा मीडिया दुनिया भर में लापता व्यक्तियों का पता लगाने में वास्तव में एक शक्तिशाली उपकरण साबित हो सकता है. लापता व्यक्तियों का विवरण देने वाले ऐसे पोस्टरों की तस्वीर को क्लिक करने और प्रसारित करने में हमें कुछ सेकंड का समय लगेगा. हमें नहीं पता कि हमारा ऐसा संदेश किसी गुमशुदा व्यक्ति को उसके परिवार से मिलाने में भी योगदान दे सकता है.
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