पानीपत । 21 जनवरी को सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने को लेकर आदिबद्री में बांध बनाने के लिए ही हरियाणा व हिमाचल प्रदेश की सरकारों के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए. जिसके बाद दोनों राज्यों की सीमा में नदी पर बांध बनाने का रास्ता साफ हो गया है. इसके साथ ही सरस्वती नदी में जल प्रवाह की संभावनाएं बढ़ गई. आज ऐसे बहुत कम लोग है जो ये जानते होंगे की सरस्वती नदी का उद्गम असल में कैसे हुआ ? शायद इस रहस्य को बहुत ही कम लोग जानते होंगे.
ऐसे हुआ सरस्वती नदी का उद्गम
बता दें 21 अप्रैल 2015 को वह ऐतिहासिक दिन था जब उपमंडल बिलासपुर के गांव रुलहाखेड़ी में सरस्वती नदी की खोदाई का कार्य शुरू किया गया था. खुदाई में सैंकड़ो की संख्या में मजदूर लगाए गए थे. वही इस खुदाई के लिए जिला प्रशासन ने दिनोंरात एक कर दिया था. बताया जाता है खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस खुदाई का जायजा लिया था. इस नदी की खुदाई कर रहे मुस्लिम दंपति सलमा और रफीक के फावड़े से सात फीट गहराई में सरस्वती नदी में पानी की जलधारा फूट पड़ी थी.
जिसके बाद प्रदेश के कई मंत्री वहां पर सरस्वती के जल का आचमन व पूजा करने पहुंचे थे. तो इस तरह से सरस्वती नहीं का उद्गम हुआ था. यानि आदिबद्री में सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है. जहां से यह नदी बूंद -बूंद के रूप में बह रही है. लेकिन संधाय, आंबवाला, भीलछप्पर, ककड़ौनी, पीरुवाला, सरस्वतीनगर, साढौरा सहित अन्य कई स्थानों पर सरस्वती प्रकट रूप में है.
जानकारी के अनुसार सन 1980 में नासा द्वारा किये गए इस इलाके के सर्वे के दौरान कुछ सेटेलाईट तस्वीरेँ सामने आई थी. जिसमे जमीन के नीचे सरस्वती नदी बहती नजर आई. इसके बाद 1990 में नासा ने फिर से इस प्रोजेक्ट पर काम किया. और नासा का जो मैप आया, उसमें जमीन के नीचे आदिब्रदी से लेकर राजस्थान तक में सरस्वती नदी व इसके चैनल को दर्शाया गया. इसके बाद वर्ष 1993 में इसरो ने इस पर काम किया. उसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सरस्वती है. वही सर्वे ऑफ इंडिया और हरियाणा के राजस्व रिकार्ड में भी सरस्वती नदी मौजूद है. नासा और राजस्व रिकार्ड का मैप भी बिल्कुल एक जैसा है.
आपको बता दें सरस्वती नदी का धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों पहलुओं से बहुत महत्व है. यह नदी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर क्षेत्र के पर्वतीय भाग से निकलकर यमुनानगर, अंबाला व कुरुक्षेत्र, कैथल व जींद जिले से होते हुए पंजाब के घग्गर नदी में मिलेगी.
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