नई दिल्ली । कोरोना काल के समय में लोगों में शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड को लेकर समझ बढ़ी है. बता दें कि पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड में निवेश बढ़ा है. अब नए लोग भी फाइनेंशियल एक्टिविटी में हिस्सा ले रहे हैं. वहीं दूसरी ओर शेयर बाजार की ओर रुख करने का दूसरा बड़ा कारण एफडी रिटर्ंस की दर में कमी होना है. इस वजह से अब अधिकतर व्यक्ति शेयर बाजार की ओर रुख करने लगे हैं. अब वह अपने पैसों को रिस्क के साथ म्यूच्यूअल फंड और इक्विटी शेयर में निवेश करना पसंद कर रहे हैं.
पिछले 10 सालों में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री ने की काफी ग्रोथ
म्यूच्यूअल फंड को एक सेट क्लास के तौर पर भी प्राथमिकता दी जाती है. बता दें कि इसका स्ट्रक्चर काफी आसान होता है जिस वजह से अधिकतर लोग इसमें इन्वेस्ट करना पसंद करते हैं. कभी भी म्यूचुअल फंड में पैसा लगाकर निवेशक का पैसा सीधा एक इक्विटी में डायरेक्ट नहीं लगता, जिस वजह से उनके पैसे डूबने की संभावना भी काफी कम होती है. यदि पिछले 10 सालों को देखा जाए तो म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री ने काफी ग्रोथ की है. वर्तमान समय में 2500 से अधिक म्युचुअल फंड स्कीम है, जहां आप इन्वेस्ट करके बेनिफिट ले सकते हैं. यदि आप भी म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने का मन बना रहे हैं, तो आप इसके लिए एक्सपर्ट की राय अवश्य लीजिए. Investica के मैनेजर रिसर्च अक्षत गर्ग ने पांच फैक्टर बताए है जिन को ध्यान में रखकर ही म्यूच्यूअल फंड को चुनना चाहिए.
म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय इन 5 फैक्टर्स का रखें विशेष ध्यान
निवेश की समय सीमा : जब भी आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो समय सीमा को निर्धारित करना बेहद जरूरी होता है. इसीलिए निवेशक को पैसा लगाने से पहले यह जान लेना चाहिए कि वह कितने समय के लिए पैसा लगाए, जिससे उसे बेहतरीन रिटर्न मिल सके. यदि कोई निवेशक 3 साल के लिए पैसा लगाना चाहता है तो उसे मिडकैप और स्मॉलकैप से दूर ही रहना चाहिए.
एक्सपेंस रेशों : जो निवेशक म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं उन्हें ऐसे म्यूच्यूअल फंड स्कीम से दूर रहना चाहिए जिनका एक्सपेंस रेशों 2 फ़ीसदी से अधिक है. इस रेशों का मतलब होता है कि कोई AMC म्यूच्यूअल फंड स्कीम चलाने के लिए कितना खर्चा करती है. एक्सपेंस रेशों का बोझ निवेशक के ऊपर ही पड़ता है.
लंबी अवधि के लिए देखें परफॉर्मेंस : यदि आप किसी म्यूच्यूअल फंड का मूल्यांकन करते हैं तो उस समय फंड का फंड के बेंचमार्क के मुकाबले परफॉर्मेंस ट्रैक करना मुश्किल होता है. ऐसे में यदि कोई म्युचुअल फंड स्कीम अपने बेंच मार्क को 3, 5 या 7 साल में भी पीछे नहीं छोड़ रहा, तो ऐसी स्कीम से आपको दूर ही रहना चाहिए.
फंड मैनेजर का अनुभव: फंड मैनेजर निवेशक के तौर पर म्यूचुअल फंड में पैसा लगाता है और फिर उस पैसे को मैनेज करता है, ऐसे में निवेशकों को ऐसी ही स्कीम में इन्वेस्ट करना चाहिए जहां फंड मैनेजर का अनुभव कम से कम 5 से 7 साल का हो.
शार्प रेश्यो: इस रेशों का इस्तेमाल किसी भी म्यूच्यूअल फंड के रिस्क परफॉर्मेंस का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है, यानी कि हम कह सकते हैं कि इस रेशों से पता चलता है कि आप किसी स्कीम में पैसा लगाते हैं तो आपको उस पर कितना रिटर्न मिलेगा और उसमें कितना रिस्क है.
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