नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने सभी स्टेट बोर्ड, CBSE, ICSE और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूल NIOS द्वारा आयोजित की जाने वाली 10 वीं और 12 वीं कक्षा के लिए ऑफलाइन परीक्षा रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं स्टूडेंट्स के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न करती है और स्टूडेंट्स को झूठी उम्मीद देती है.
CBSE बोर्ड की 10 वीं और 12 वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं ऑनलाइन कराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील सुनने के बाद याचिका खारिज करने का निर्णय लिया. याचिकाकर्ता ने कहा था कि पिछले साल की तरह ही परीक्षा ऑनलाइन माध्यम से कराने के आदेश दिए जाएं.
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि आपकी याचिका पर विचार करने का मतलब है कि और ज्यादा कन्फ्यूजन की स्थिति उत्पन्न होने देना. पहले ही आपने जनहित याचिका के नाम पर ये अर्जी दाखिल कर स्टूडेंट्स और अभिभावकों के बीच बहुत कन्फ्यूजन किया हुआ है. कोर्ट ने कहा कि आपको जो कहना है, ऑथोरिटी को जाकर बताएं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले चार दिनों से आप ऐसी जनहित याचिकाओं के जरिए न केवल कन्फ्यूजन बढ़ा रहे हैं बल्कि स्टूडेंट्स को झूठी उम्मीदों की तसल्ली भी दे रहे हैं. यें गैरजिम्मेदाराना ढंग से जनहित याचिका का दुरुपयोग हैं. कोर्ट ने निराशा भरे लहजे में कहा कि पता नहीं लोग भी कैसी-कैसी याचिका दायर कर देते हैं.
याचिकाकर्ता ने कहा कि आपने पिछले साल भी ऐसी याचिका पर विचार किया था. अबकी बार भी हालात बिल्कुल वैसे ही हैं. कोविड-19 की वजह से स्कूल बंद हुए तो स्टूडेंट्स को ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ी. सेलेब्स पूरा नहीं हुआ है, स्टूडेंट्स को स्कूल में रेगूलर पढ़ाई करने का मौका नहीं मिला. इस पर कोर्ट ने कहा कि बोर्ड और ऑथोरिटज को सब पता है, हमारे दखल देने का कोई मतलब नहीं है. ये याचिका बिल्कुल भी उचित नहीं है, आप ऐसी याचिका दायर करने से बाज आए वरना हमें आप पर आर्थिक दंड लगाते समय ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
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