सरसों के बाद गेहूं खरीद का कोटा पूरा करना हुआ मुश्किल, निर्यात से मोटी कमाई के चक्कर में व्यापारी

चंडीगढ़ । रूस और यूक्रेन (Russia- Ukraine War) के बीच छिड़ी जंग थमने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं और इसका सीधा असर हरियाणा में गेहूं की सरकारी खरीद पर भी दिख रहा है. युद्ध की स्थिति को देखते हुए वैश्विक स्तर पर गेहूं की मांग बढ़ने वाली है, इसको देखते हुए व्यापारी मंडियों की बजाय गेहूं (Wheat) की खरीद के लिए किसानों के खेतों के चक्कर लगा रहे हैं.

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वैश्विक स्तर पर गेहूं की बढ़ती मांग के चलते व्यापारी गेहूं के निर्यात से मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में हैं. ऐसे में वह किसानों से सीधे न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी (MSP) से ज्यादा भाव पर गेहूं खरीद रहे हैं. इसके चलते प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य पूरा करना सरकारी एजेंसियों के लिए चुनौती बन गया है.

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हरियाणा में सरकारी एजेंसियों को 85 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य दिया गया है लेकिन नौ दिन में सरकारी एजेंसियों के सिर्फ सात लाख टन गेहूं ही हाथ लगी है. सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2015 रुपये निर्धारित किया हैं लेकिन व्यापारी सीधे खेत से ही 2100 से 2200 रुपये के बीच में गेहूं की खरीद कर रहे हैं. हालांकि मंडी में जो व्यापारी गेहूं खरीद रहे हैं, वह एमएसपी से केवल 20 से 50 रुपये क्विंटल ही ज्यादा दे रहे हैं.

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खरीद में एफसीआइ सबसे आगे

व्यापारी सीधे किसानों के खेतों से गेहूं की खरीद कर रहे हैं जिसके चलते मंडियों में गेहूं की आवक जोर नहीं पकड़ रही है. मौजूदा रबी सीजन में सरकार की ओर से गेहूं खरीद के लिए 411 मंडियों की व्यवस्था की गई है. ई-खरीद पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिक अभी तक तकरीबन सात लाख टन गेहूं की खरीद सरकारी एजेंसियों ने की है. इनमें हैफेड ने दो लाख टन, एफसीआइ ने ढाई लाख टन, खाद्य आपूर्ति विभाग ने 1.85 लाख टन और हरियाणा वेयर हाउसिंग ने 97 हजार टन गेहूं की खरीद की है.

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