पानीपत की मशहूर कलंदर दरगाह, जहां ताले लगाकर मांगी जाती है मन्नत

पानीपत। पेड़ पर धागा बांधकर, पेड़ के सामने दीया जलाना, ईट पर ईंट रखकर कोठी बनाकर, ऐसे मन्नत मांगते हुए आपने देखा और सुना होगा. पानीपत में एक ऐसी दरगाह है, जहां ताला लगाकर मन्नत मांगी जाती है. ये है बू अली शाह कलंदर की दरगाह. आइए हम आपको ईद के त्योहार पर इस दरगाह के बारे में बताते हैं. कहा जाता है कि इस दरगाह का निर्माण खिलजी के पुत्रों ने करवाया था.

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कलंदर साहब का नाम शेख शराफुद्दीन था. शेख फखरुद्दीन उनके पिता थे. उनकी काफी पहचान थी. शराफुद्दीन पानीपत आने से पहले दिल्ली में रहते थे. कुतुब मीनार के पास रहते वह इतना प्रसिद्ध हुए कि कलंदर बन गये. पारसी कविता संग्रह दीवान-ए-हजरत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर ने लिखा. जो उनकी दरगाह पर माथा टेकने आता है, वह भी ताला लगाकर जाता है.

गुरुवार को यहां सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं. खास बात यह है कि इस दरगाह में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कोई भेदभाव नहीं है. यहां हजारों हिंदू भी पहुंचते हैं. कलंदर चौक का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है. उनके मकबरे के पास ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली का प्रसिद्ध मकबरा है.

जन्म स्थान को लेकर एक मत नहीं

कलंदर साहब के जन्मस्थान के बारे में कोई एक राय नहीं है. कोई कहता है कि उनका जन्म तुर्की में हुआ था, कोई कहता है कि उनका जन्म अजरबैजान में हुआ था. पानीपत को उनका जन्मस्थान भी कहा जाता है. एजाज अहमद हाशमी के मुताबिक उनका जन्म पानीपत में हुआ था. उन्होंने यहां शिक्षा भी प्राप्त की. बाद में दिल्ली चले गए लेकिन वापस भी लौट आए.

दुनिया में सिर्फ ढाई दरगाह हैं.

क्या आप जानते हैं कि पानीपत की दरगाह बहुत महत्वपूर्ण है. दरअसल दुनिया में सिर्फ ढाई दरगाह हैं. पहली पानीपत की बू अली शाह की दरगाह है. दूसरा पाकिस्तान में और तीसरा इराक में है.इराक के बसरा में दरगाह एक सूफी महिला की है. इस वजह से इसे आधी दरगाह का दर्जा मिला है. अजमेर शरीफ में चादर चढ़ाने वाले पानीपत जरूर पहुंचते हैं. क्योंकि कहा जाता है कि अजमेर शरीफ में नतमस्तक होने के बाद मन्नत तभी पूरी होगी जब कोई पानीपत की कलंदर दरगाह पहुंचेगा.

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