जींद | हरियाणा के जींद जिले के ढिगाणा गांव में बहुत बड़ी सांझी बनाई गई है. लगभग 12 फीट की इस बार सांझी (Sanjhi Mai) देखने को मिली है. वहीं, ग्रामीणों ने कई दिनों पहले इसकी तैयारी आरंभ कर दी थी. गांव में 101 सांझी बनाने का लक्ष्य रखा गया है. ग्रामीणों ने बताया कि विशेषकर सांझी के कई स्वरूप है मगर सांझी का स्वरूप एक देवी से जुड़ा हुआ है. पूरे उत्तर भारत में नवरात्रि को काफी धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है. लोगों में काफी उत्साह देखने को मिलता है. दशहरे वाले दिन सांझी माई की विदाई की जाती है. हर शाम को महिला इकट्ठा होकर गीत गाती हैं और यह सिलसिला दशहरे के दिन तक चलता रहता है.
बता दें कि नवरात्रि से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है. इस दौरान घर के बाहर, दरवाजे पर, भित्ति चित्र-कुधायक पर गाय के गोबर से तरह-तरह की कलाकृतियां बनाई जाती हैं. मुख्य आकृतियाँ सांझी देवी, उनकी बहन फूह और खोड़ा काना बामन के नाम से बनी हैं. उन्हें हार, चूड़ियां, फूलों के पत्ते, मलाइपन्ना सिंदूर और रंग-बिरंगे कपड़ों आदि से सजाया जाता है.
शाम के समय नियमित रूप से एकत्रित होकर पूजा की जाती है. घी का दीपक जलाया जाता है फिर देवी को “सांझा माई गिम्ले, ना धापी तो ओर ले, धप जी तो छोड़ दे” गीत गाकर, वे मीठे व्यंजन पेश करते हैं और उपस्थित सभी को प्रसाद वितरित करते हैं फिर लोक गीत गाए जाते हैं, यंत्र बजाए जाते हैं और सभी खूब नाचते हैं, फिर कुछ भजन संगीत करने के बाद अंत में आरती की जाती है. हर दिन अलग-अलग घरों से तरह-तरह के प्रसाद बांटने की बारी है. महिलाओं, बच्चों और लड़कियों में काफी उत्साह देखने को मिलता है.
हाथी-घोड़े, किला-कोट, गाड़ी आदि की आकृतियां बनाई जाती हैं. अमावस्या के सोलहवें दिन, सांझी देवी को दीवार से उतारकर मिट्टी के बर्तन में रखा जाता है. उनके सामने तेल और घी का दीपक जलाया जाता है. फिर सब मिलकर सांझी देवी को गाने के साथ विदा करने जाते हैं. विसर्जन के लिए जाते समय पूरे रास्ते में इस प्रकार का ध्यान रखा जाता है. पूरे रास्ते में हंसी, नृत्य, गीत गाए जाते हैं. सांझी माई के जाने पर प्रसाद बांटा जाता है.
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