जींद |हरियाणा में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव का बिगुल बज चुका है और इसके लिए 30 अक्टूबर को जिला परिषद और पंचायत समिति मेंबर तथा 2 नवंबर को सरपंच-पंच पद के लिए वोट डाले जाएंगे. पहले चरण के लिए जिन नौ जिलों में चुनाव होंगे. वहां बुधवार शाम को नामांकन प्रक्रिया सम्पन्न हो गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में गांवों की छोटी सरकार चुनने को लेकर लोगों में उत्सुकता है लेकिन जींद जिले के 3 गांव ऐसे हैं जहां गांवों के लोगों ने पंचायती चुनावों का बहिष्कार कर दिया है.
जींद जिले के गांव चाबरी, रोजखेड़ा और भिड़ताना गांवों के लोगों ने पंचायत चुनावों का बहिष्कार कर दिया है. इन गांवों के लोग चाबरी गांव के पास से जींद-सोनीपत ग्रीनफील्ड हाइवे पर चढ़ने व उतरने के लिए रास्ता देने की मांग को लेकर पिछले डेढ़ महीने से धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. बुधवार को नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन इन तीनों गांवों के लोगों ने अपनी एकता का परिचय देते हुए गांवों की ओर से किसी ने भी नामांकन दाखिल नहीं किया. ऐसे में अब इन गांवों में 2 नवंबर को होने वाले सरपंच व पंच चुनाव की संभावना नजर नहीं आ रही है.
आज टोल फ्री करवाएंगे ग्रामीण
पिछले डेढ़ महीने से रास्ते देने की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों आते हैं और सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं. उन्होंने कहा कि मांग पूरी नहीं से खफा होकर ही पंचायती चुनावों के बहिष्कार का फैसला लिया गया है. वहीं अपनी मांग पूरी करने को लेकर हरियाणा सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत तीनों गांवों के ग्रामीण लुदाना टोल प्लाजा पर पहुंचेंगे और दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक टोल फ्री करवाएंगे.
रोजखेड़ा गांव में भी अजीबोगरीब मामला
वहीं, उचाना विधानसभा क्षेत्र के गांव रोजखेड़ा में कुल वोटरों की संख्या का आंकड़ा 414 है और ग्रामीणों के अनुसार अनुसूचित जाति के मात्र 9 ही वोट है. जबकि चुनाव आयोग द्वारा गांव में अनुसूचित जाति के 84 वोटों का हवाला देकर इस बार सरपंच पद अनुसूचित जाति महिला के लिए रिजर्व कर दिया है.
ग्रामीणों ने बताया कि साल 2011 की जनगणना में गांव के साथ लगते ईट-भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों की गिनती भी गांव रोजखेड़ा में ही कर दी गई थी, जिससे गांव में अनुसूचित जाति के इतने वोट दर्शाए गए हैं. इस मामले को लेकर डीसी व एसडीएम से भी ग्रामीण मुलाकात कर चुके हैं लेकिन समाधान नहीं हो रहा है. इसी वजह से ग्रामीणों ने पंचायत चुनावों के बहिष्कार का फैसला लिया है.
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