Special Story: जिस देश में लड़कियों को प्राप्त है देवी का स्थान, वहां क्यों है दरिंदगी; क्या वास्तव में आजाद हैं हम

नई दिल्ली | देश की आजादी के लिए वीरों और स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा तो हमने ख़ूब सुनी है. उनकी दी हुई कुर्बानियों की वजह से आज हमारा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ का जश्न मना रहा है लेकिन साल 1947 में देश आज़ाद होने के इतने वर्षों बाद भी क्या वास्तव में हम सही मायनों में आज़ाद हो पाए हैं. जरा सोच कर देखिये. अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी के बाद भी हम किसकी गुलामी कर रहे है??

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आखिर किसके गुलाम हैं हम

दरअसल, इस सवाल का बेहद अजीब सा जवाब है कि वास्तव में हम अपनी “सोच के ही गुलाम” बन चुके हैं. क्या हम अपनी सोच से पूर्ण रूप से आज़ाद हो पाए है?? देश के कई ऐसे मुद्दें है जिसमें लोगों के सोच की गुलामी साफ-साफ देखने को मिलती है. सरकार के पास इस वक़्त सबसे अहम मुद्दा देश में शिक्षा का है, जिसके पूर्ण विकास के बाद ही लोगों की सोच को बदला जा सकेगा. अन्यथा, हम केवल आज आज़ादी का जश्न ही मनाते रहेंगे और इधर देश एक बार फिर गुलामी का शिकार हो जाएगा.

अपनी “सोच की गुलामी” से हमारा अर्थ ये है कि देश में नकारात्मक घटना जैसे – महिलाओं के साथ सामुहिक दुष्कर्म, दहेज के लिए प्रताड़ना, बेटियों को जन्म लेते ही मार देना, बेरोजगारी, नक्सलवादी, आदि को आएदिन अंजाम दिया जाता है जिसका नतीजा सभी देशवासियों को भुगतना पड़ता है. अक्सर ऐसा काम वही लोग करते हैं जिनके पास सोच की कमी होती है या उनकी सोच पर पुराने ख्यालातों ने कब्जा कर रखा होता है.

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जिस देश में है प्राप्त देवी का स्थान, वहां क्यों है दरिंदगी

हमारे देश में बेटियों, बहुओं को देवी का स्थान दिया जाता है लेकिन क्या वास्तव में देश की बहू, बेटियां सुरक्षित हैं? कहने को तो हमारा देश 75 साल पहले ही आज़ाद हो चुका है लेकिन क्या अब भी देश की महिलाएं आज़ाद हो पाई हैं? क्या दरिंदों की हवस के शिकार से खुद को सुरक्षित रख पाई हैं? क्या आज भी महिलाओं को अपने हक के लिए लड़ने दिया जाता है? क्या आज भी वो अपने मनपसंद कपड़े पहन सकती हैं? सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण सवाल क्या आज महिलाएं देर रात तक घर से बाहर सुरक्षित हैं?? इन सभी सवालों का बस एक ही जवाब है और वो है “नही”.

पहनावे-ओढ़ावे पर की जाती है टिप्पणी

आएदिन यह सुनने को मिलता है कि देश की बहू, बेटीयां सामुहिक दुष्कर्म का शिकार हो रही है तो किसी के ऊपर एसिड फेक दिया जाता है तो कहीं दुष्कर्म करने के बाद उसकी बेरहमी से हत्या कर दी जाती है. सिर्फ हमारे देश की महिलाएं ही नही बल्कि इन सब नकारात्मक सोच का शिकार तो अक्सर विदेशी महिलाएं भी हो जाती हैं. लड़की अगर देर रात बाहर हैं तो उनपर लोगों की बुरी नज़र जाती है. लड़कियों व खुली सोच वाली महिलाओं के पहनावे-ओढ़ावे पर अक्सर समाज के लोगों द्वारा टिप्पणी की जाती है.

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दूसरों की माँ-बहनों पर बुरी नज़र डालने वाले पुरूष ऐसा इसलिए करते है क्योंकि वो आज भी महिलाओं को अपने हाथ की कठपुतली समझते हैं. उनका ये मानना है कि पुरुष ही सर्वश्रेष्ठ हैं लेकिन जिस दिन वो इस सोच को बदल देंगे और यह सोचेंगे कि वो भी किसी के घर की इज़्ज़त है, इंसान है, देश का गौरव है उस दिन हमारा देश सही मायने में आज़ाद हो पाएगा.

ये कैसी आज़ादी जो बेटियों को पढ़ने से रोके

आपको बता दें कि आज भी हमारे देश में ऐसे कई गांव व कस्बे है जहां सही और उचित ढंग से विकास नही हो पाने से “शिक्षा के महत्व” को लोग नही समझते. जिस कारणवश लोग बेटियों को पढ़ने से रोकते है, उनका मानना है कि बेटियां केवल शादी-व्याह कर अपनी गृहस्ती सम्भालने के लिए जन्मी हैं. ज्यादा पढ़ लिख कर क्या करेंगी आखिर करना इन्हें चूल्हा-चौकी ही है इसलिए इन्हें घर के कामकाज ही सीखने चाहिए. ऐसे में विकास की कमी लोगों की सोच को पूर्ण रुप से विकसित होने से बाधित कर रही है. उचित शिक्षा की कमी लोगों को आगे बढ़ने और जागरूक होने से रोक रही है. ऐसे पिछड़े इलाकों में विकास दर ना के बराबर है और ऐसे में आज़ादी के जश्न को मनाने का कोई महत्व नही रह जाता.

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हालांकि, ऐसा नही है कि पूरे देश में एक जैसी स्थिति है. आजकल ज्यादातर लोग खुद को और अपने परिवार के सदस्यों को खासकर लड़कियों को शिक्षित करने के साथ उन्हें अपनी जिंदगी उनके हिसाब से जीने की पूरी आजादी दे रखे हैं लेकिन देश में ऐसे माहौल का डर देश के हर माता-पिता को सताता है.

बेहतर शिक्षा ही दिला सकती है पूर्ण आज़ादी

सरकार को “सभी की शिक्षा, देश का विकास” के मूलमंत्र पर तेज़ी से काम करने की जरूरत है. सरकार अगर इस बात पर ध्यान दे तो शिक्षा के विकास पर खासतौर से पिछड़े गांव, कस्बों की जनता के नकारात्मक सोच को बदला जा सकता है. बेहतर शिक्षा से प्रजनन दर को नियंत्रित किया जा सकता है, बेटियां पढ़ेंगी तो वो खुद के लिए और अपने परिवार के बेहतर भविष्य के बारे में सोच सकेंगीं. देश की विकास के लिए सरकार द्वारा चलाये जा रहे अभियानों को अभी भी पूरी सफलता नही मिली है.

अन्यथा, देश के सभी स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी मिट्टी में मिल जाएगी और एक बार फिर हम ऐसे नकारात्मक सोच के गुलाम हो जाएंगे, जिससे हमें कोई भी आज़ादी नही दिला पाएगा.

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