नई दिल्ली | टेलीकॉम कंपनियों की तरफ से लगातार बढ़ती हुई महंगाई, महंगे स्पेक्ट्रम या ज्यादा लाइसेंस फीस का हवाला देते हुए एक बार फिर से टैरिफ प्लान बढ़ाने की बातें की जा रही है. बता दें कि कंपनियों की तरफ से साल 2021 में 20 से 25 परसेंट टैरिफ बढ़ाया गया था. 2022 में भी कंपनियों की तरफ से कुछ इसी प्रकार की बातें सामने आ रही थी. पहले माना जा रहा था कि नवंबर में कंपनियां 10 से 15% तक टैरिफ बढ़ा सकती है परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ. अब उम्मीद इस बात की है कि कंपनियों की तरफ से टैरिफ प्लान न बढ़ाया जाए.
क्या सस्ते होंगे सभी रिचार्ज प्लान
कंपनियों के खर्च का एक बड़ा हिस्सा एनुअल लाइसेंस फीस है. फिलहाल, कंपनियों को अपने एडजेस्टेड ग्रॉस रिवेन्यू का 8 परसेंट हर साल बतौर लाइसेंस फीस के रूप में देना होता है. नए टेलीकॉम बिल में सरकार यह लाइसेंस फीस कम कर सकती है. दूरसंचार मंत्रालय टेलीकॉम बिल के पहले ड्राफ्ट की वजह से पहले ही विवादों में घिरा था.
बता दें कि इस ड्राफ्ट पर 20 नवंबर तक तकरीबन 900 आपत्तियां आ चुकी थी. अब खबरें सामने आ रही है कि दिसंबर के अंत तक सरकार संशोधित ड्राफ्ट पेश कर सकती है, जिसमें लाइसेंस फीस भी AGR के 8% से घटकर 5 से 6% तक की जा सकती है.
इन नियमों का करना होगा पालन
टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस फीस में राहत दिलाने का काफी श्रेय व्हाट्सएप जैसी बिग टेक कंपनियों को भी जाता है. टेलीकॉम बिल के पहले ड्राफ्ट में कहा गया था कि व्हाट्सएप, टेलीग्राम, स्काइप जैसे कम्युनिकेशन ऐप को रेगुलशन्स के दायरे में लाया जाएगा. इसके तहत इन्हें चलाने वाली कंपनियों को भी भारत में बिजनेस करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होगा.
- इन कंपनियों को लाइसेंस लेना होगा.
- अपना डेटा भारतीय सर्वर पर रखना होगा.
- जांच एजेंसियों को डाटा का एक्सेस देना होगा.
इन तीनों ही प्रावधानों के खिलाफ बिग टेक कंपनियां काफी मुखर रही है. पहला ड्राफ्ट सार्वजनिक होने के बाद से सरकार भी इस प्रावधान को लेकर दबाव में थी. मंत्री अश्विनी वैष्णव भी इसके बाद कई मंचों पर यह कह चुके हैं कि सरकार का इरादा इन कंपनियों पर पाबंदियां लगाने का नहीं है.
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